ठाकुर जी ने पंचायत में गवाही देकर एक ब्राह्मण की शादी करवाई
एक समय की बात है, एक वृद्ध ब्राह्मण थे। वे ब्राह्मण बहुत धनी थे, उनके चार
पुत्र और एक पुत्री थी। चारों पुत्रो का विवाह हो गया था, पुत्री का विवाह होना
बाकी था। ब्राह्मण वृद्ध थे और तीर्थ यात्रा करना चाहते थे, परन्तु वृद्धावस्था
के कारण वे स्वयं अकेले तीर्थ यात्रा पर नहीं जा सकते थे। उनके चारों पुत्र
अपने पिता का कहना नहीं मानते थे, और वे सभी अपनी-अपनी गृहस्थी में इतने व्यस्त
थे, की उनके पास अपने पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाने का समय ही नहीं
था।
एक दिन वृद्ध ब्राह्मण ने अपने गाँव के रहने वाले एक गरीब ब्राह्मण पुत्र महेश
से कहा, अरे भैया, तुम काम के लिए इधर उधर भटकते फिरते हो। यदि तुम मुझे तीर्थ
यात्रा करा लाओ, तो मैं तुम्हारे खाने-पिने की व्यवस्था कर दूंगा और तुम्हें
कुछ धनराशी भी दे दूंगा। महेश भगवान श्री कृष्ण का भक्त था, वह बोला, यह तो
बहुत अच्छी बात है, आपके साथ मुझे भी तीर्थो के दर्शन हो जायेगें। महेश तीर्थ
यात्रा पर जाने के लिए सहर्ष राजी हो गया।
दोनों तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। वृद्ध ब्राह्मण जहाँ-जहाँ जाना चाहते थे,
महेश उन्हें उन सभी तीर्थो में ले गया। पुरे मार्ग में महेश ने उन
वृद्ध ब्राह्मण की बहुत सेवा की, और हर तरह से उनका ख्याल रखा और उन्हें किसी
प्रकार का कोई कष्ट नहीं होने दिया। यात्रा करते करते वे दोनों वृंदावन पहुंचे।
वृंदावन में वृद्ध ब्राह्मण बिमार हो गए, महेश ने उनकी खूब सेवा की और
उन्हें कुछ ही दिनों में स्वस्थ कर दिया।
महेश की सेवा से वृद्ध ब्राह्मण का हृदय द्रवित हो गया, इसलिए वह उसे कुछ देना
चाहता था। जब वे दोनों वृंदावन में श्री ठाकुर जी के दर्शन क्र रहे थे, तब उस
वृद्ध ब्राह्मण ने महेश से कहा, बेटा तुमने मेरी बहुत सेवा की है, मैं
तुम्हे क्या दे सकता हूँ। मेरी एक पुत्री है, जो बहुत सुन्दर और गुणवान है, मै
चाहता हूँ तुम उससे विवाह करो और मैं तुम्हें बहुत सा धन भी दूंगा।
महेश बोला, बाबा, तुम यहाँ बोल तो रहे हो, की तुम अपनी पुत्री का विवाह मुझसे
करोगे, लेकिन क्या तुम्हारे चारों पुत्र इस बात को मानेगें। वृद्ध ब्राह्मण
बोला, मेरे पुत्र मेरी बात क्यों नहीं मानेंगें, मैं ठाकुर जी को साक्षी करके
कहता हूँ, की मैं अपनी पुत्री का विवाह तुमसे करूँगा और तुम्हें धन संपत्ति भी
दूंगा। कुछ दिनों बाद वे दोनों तीर्थ यात्रा करके घर लौट आए।
घर आने के बाद वृद्ध ब्राह्मण अपनी पुत्री के विवाह की बात अपने पुत्रों से
कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका। एक महीने से अधिक का समय बीत गया। उधर
महेश को विवाह सम्बंधित कोई सुचना नहीं मिलने पर वह उन वृद्ध ब्राह्मण के
घर चला गया। घर जाकर उसने वृद्ध ब्राह्मण को उनका वचन याद दिलाया, की आपने अपनी
पुत्री का विवाह मुझसे करने का वचन दिया है, तो आप अपनी पुत्री से मेरा विवाह
कब करवा रहें है।
गरीब ब्राह्मण के मुख से ऐसी बात सुनकर, वृद्ध ब्राह्मण के चारों पुत्र
क्रोधित हो गए। उन चारों ने मिलकर महेश की पिटाई कर दी और उससे कहा की
तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारी बहन से विवाह करने के बारे में सोचने की। तेरी
हैसियत ही क्या है, जो तू हमारी बहन से विवाह करेगा। महेश बोला मै जानता
हूँ, आपके सामने मेरी कोई हैसियत नहीं, लेकिन आप ही के पिताजी ने मुझे वचन दिया
था की वे अपनी पुत्री का विवाह मुझसे करेंगें।
अपने पुत्रों का ऐसा उग्र रूप देखकर वृद्ध ब्राह्मण अपने वचनों से पलट गया, और
बोला मुझे याद ही नहीं है की मैंने तुम्हें ऐसा कोई वचन दिया था।
महेश बोला आपने वृंदावन में श्री ठाकुर जी को साक्षी करके मुझे वचन दिया
था, की आप अपनी पुत्री का विवाह मुझसे करेंगें। वृद्ध ब्राह्मण बोला, मुझे ऐसी
कोई बात याद नहीं। इसके बाद ब्राह्मण के चारों पुत्रों ने महेश को पीट कर भगा
दिया। महेश को वृद्ध ब्राह्मण और उसके पुत्रो के इस व्यवहार से बहुत बुरा
लगा।
महेश ने सोचा, की मैंने तो वृद्ध ब्राह्मण की पुत्री से विवाह की बात नहीं की
थी। उन्होंने स्वयं ही विवाह का प्रस्ताव दिया था, परन्तु उन्होंने मुझसे झूठ
बोला और घर जाने पर मेरा अपमान भी किया, अब तो मैं अवश्य ही उनकी पुत्री से
विवाह करूँगा। ऐसा सोचकर महेश ने पंचायत बुलाई, और उनसे कहा की ये वृद्ध
ब्राह्मण मुझे तीर्थ यात्रा पर अपने साथ ले गए, मैंने पुरे मार्ग में इनकी बहुत
सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर इन्होने ठाकुर जी के सामने अपनी पुत्री का विवाह
मुझसे करने का वचन दिया, परन्तु अब यह अपने वचनों से मुकर रहें है।
पंचायत के लोगों ने कहा, यदि तुम दोनों के मध्य हुई इस बात की कोई गवाही दे
दे, तो हम निश्चित ही तुम्हारा विवाह इन वृद्ध ब्राह्मण की पुत्री से करवा
देंगें। महेश बोला हम दोनों की इस बात के गवाह तो केवल ठाकुर जी ही थे। पंच
बोले यदि ठाकुर जी तुम्हारे पक्ष में गवाही दे दें, तो हम तुम्हारा विवाह करवा
देंगे। वह वृद्ध ब्राह्मण भी इस बात पर राजी हो गया, क्योकि वह जानता था की
ठाकुर जी स्वयं इस बात की गवाही देने नहीं आने वाले।
महेश एक सच्चे ह्रदय वाला एक भोला व्यक्ति था। वह ठाकुर जी को मूर्ति नहीं
मानता था, वह उन्हें साक्षात् ठाकुर जी ही मानता था। पंचो की बात मानकर
वह वृंदावन पंहुचा, जब वह वृंदावन पंहुचा तब तक ठाकुर जी की शयन आरती हो
चुकी थी और मंदिर बंद हो चुका था। महेश ने मंदिर के बाहर से ही पूछा, सुनो
ठाकुर जी, उस वृद्ध ब्राह्मण ने आपके सामने मेरे ब्याह की बात की थी या नहीं की
थी। महेश ने दो चार बार आवाज लगाई, परन्तु उसे कोई उत्तर नहीं
मिला।
अब उसने जोर से दरवाजा पीटकर आवाज लगाई, सुनो ठाकुर जी, मैं आपको चैन से सोने
नहीं दूंगा, जब तक आप जवाब नहीं देंगे, तब तक मैं आपसे पूछता ही रहूँगा। मैं
इतनी दूर से भूखा-प्यासा पैदल चलकर आपसे जवाब लेने आया हूँ। मेरे ब्याह की बात
है, आपको मेरे साथ गवाही देने चलना ही पड़ेगा। ठाकुर जी मंदिर के भीतर से बोले,
मूर्ति भी कभी चलती है। महेश बोला, जब मूर्ति बोलती है, तो चलेगी क्यों नहीं।
ठाकुर जी फंस गए, अब ठाकुर जी को विवश होकर बाहर आना पड़ा।
महेश ने देखा बहुत सुन्दर छोटे से ठाकुर जी अपने छोटे-छोटे पैरों से चलकर बाहर
आये, और बोले, देखो महेश हम तुम्हारे भाव के कारण तुम्हारे साथ चलने को तैयार
है, लेकिन तुम्हें मार्ग में हमारे भोग की व्यवस्था करनी पड़ेगी, हम वृंदावन के
ठाकुर हैं, रोज रबड़ी मलाई और मिठाइयों का भोग लगातें है, तुम्हें मार्ग में
हमारे लिए ऐसी ही व्यवस्था करनी होगी। महेश बोला देखो हमारे ब्याह की बात है,
इसलिए कुछ रूपया तो मैं साथ में लेकर आया हूँ, इसलिए मार्ग में आपके भोग की
सारी व्यवस्था कर दूंगा।
लेकिन आप बताओ आप मेरे साथ कैसे चलेगें। ठाकुर जी बोले हम तुम्हारे साथ पैदल
चलेगें, आगे आगे तुम चलना पीछे-पीछे हम चलेंगें, और मार्ग में थोड़ी-थोड़ी देर
में हमें भोग लगा देना। महेश बोला, ठाकुर जी वो सब तो ठीक है, लेकिन मैं
आगे-आगे चलूँगा, तो मुझे कैसे मालूम होगा की आप पीछे-पीछे आ रहें है या नहीं।
ठाकुर जी बोले, तुम्हे मेरे नूपुरों की ध्वनि पुरे मार्ग में सुनाई देगी, लेकिन
एक बात याद रखना, यदि तुमने मुझे पीछे मुड़कर देखा, तो मैं वहीं ठहर जाऊंगा, और
आगे नहीं जाऊंगा।
बात तय हो गयी, और दोनो चल दिए। महेश मार्ग में समय-समय पर ठाकुर जी को भोग
लगाता हुआ आगे बढ़ रहा था, और उसे अपने पीछे ठाकुर जी के नूपुरों की ध्वनि भी
सुनाई दे रही थी। जब महेश अपने गाँव के नजदीक पहुंचा, तो उसने सोचा की क्या
ठाकुर जी मेरे पीछे आ भी रहे है, या केवल नूपुर ही बज रहें है। यह सोचकर उसने
पीछे मुड़कर देखा, उसने देखा ठाकुर जी उसके पीछे खड़े थे।
महेश बोला, चलिये ठाकुर जी अब गाँव कुछ ही दूर रह गया है। ठाकुर जी बोले, अब
मैं कहीं नहीं जाऊंगा, हमारी तुम्हारी बात तय हुई थी, अगर तुम पीछे मुड़कर
देखोगे, तो मैं वहीं स्थिर हो जाऊंगा। अब तुम्हें जिसको भी बुलाना हो, यहीं
हमारे पास लेकर आओ, मैं यहीं गवाही दूंगा। महेश गाँव में दौड़ता हुआ गया और सबको
चिल्लाकर बताया, वृंदावन के ठाकुर पधारे हैं गवाही देने के लिए। यह सुनकर सारे
गाँव के लोग जमा हो गए, पंचायत बैठ गयी, सबने ठाकुर जी के दर्शन
किये।
ठाकुर जी ने सबके सामने भक्त महेश की वचन रक्षा के लिए गवाही दी, की हाँ इस
वृद्ध ब्राह्मण ने मेरे सामने अपनी पुत्री का विवाह इस गरीब ब्राह्मण महेश से
करने का वचन दिया था और इसे धन देने का भी वादा किया था। ठाकुर जी को साक्षात्
गवाही देते सुनकर उस वृद्ध ब्राह्मण का झूठ सभी के सामने आ गया और वह पुरे गाँव
के सामने लज्जित हो गया। अब उसने अपनी गलती भी मान ली। ठाकुर जी की गवाही पर
पंचो ने महेश का विवाह उस वृद्ध ब्राह्मण की पुत्री से करवा दिया और इसके अलावा
वृद्ध ब्राह्मण की संपत्ति का एक हिस्सा भी महेश को दिया गया।
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