बूँदी के राजकुमार की कहानी, जो देश के सम्मान के लिए बलिदान हो गया - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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शनिवार, 1 अप्रैल 2023

बूँदी के राजकुमार की कहानी, जो देश के सम्मान के लिए बलिदान हो गया

बूँदी के राजकुमार की कहानी, जो देश के सम्मान के लिए बलिदान हो गया


मेवाड़ के महाराणा लाखा का विवाह बूंदी के हाड़ा राजपूतों की राजकुमारी से किया गया। विवाह के दो-तीन दिन बाद महाराणा लाखा, हाड़ी रानी के महल में भोजन कर रहे थे। महाराणा ने देखा, कि रानी कुछ उदास है, उन्होंने रानी की उदासी का कारण पूछा। रानी ने कहा, राणाजी, आप व्यर्थ ही चिंता कर रहे हैं, मैं उदास नहीं हूं।


महाराणा लाखा बोले - यदि आपका यहाँ मन नहीं लग रहा है, तो आप चित्तौड़ घूम आइये, हमारा चित्तौड़ बहुत सुंदर है, आप चित्तौड़ का भ्रमण करेंगीं, तो आपको अच्छा लगेगा। 

रानी बोली - मैंने चित्तौड़ घूम लिया है। 

राणा ने पूछा, तो कैसा लगा आपको हमारा चित्तौड़। 

रानी बोली, ठीक है।  

राणा बोले - केवल ठीक, आपने अभी हमारे चित्तौड़ को देखा नहीं है।

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रानी बोली - मैंने चित्तौड़ देख लिया है, चित्तौड़ से अधिक सुंदर हमारा बूंदी है। आप कभी हमारे बूंदी आइए, हम आपको पूरा बूंदी घुमाएंगे। जब आप विवाह के समय आए थे, तो आपने बूंदी को ठीक से नहीं देखा था। जब आप अगली बार ससुराल चलेंगे, तब हम आपको हमारे बूंदी का भ्रमण करवायेंगे, तब आपको पता चलेगा कि हमारा बूंदी कितना सुंदर है। 


राणा लाखा खाना खाते-खाते ही बोले - लगता है आपने हमारे चित्तौड़ को पूरा ठीक से नहीं देखा है। आप चित्तौड़ के सभी मंदिर घूम कर आइए, गोरा बादल के महल देखिए, चित्तौड़ का किला देखिए, तब आपको पता चलेगा, कि चित्तौड़ बूंदी से कहीं ज्यादा सुंदर है। 


रानी बोली - मैंने यह सब देख लिया है, फिर भी मैं कहती हूं, कि बूंदी ही ज्यादा सुंदर है। 

यह बात महाराणा लाखा को चुभ गई, और खाना खाते-खाते उनका हाथ बीच में ही रुक गया। 

उन्होंने गंभीरता पूर्वक पूछा, रानी-सा ठीक-ठीक बताइए आपने चित्तौड़ पूरा देखा है या नहीं। 

रानी को लगा कि अब महाराणा नाराज हो रहे हैं, इसलिए उन्होंने कहा कि हां मैंने चित्तौड़ देखा है, मैं तो मजाक कर रही थी, चित्तौड़ बूंदी से ज्यादा सुंदर है। 


राणा लाखा ने कहा, मैं आपसे अंतिम बार पूछ रहा हूं, आप मुझे सच बताइए, कि चित्तौड़ ज्यादा सुंदर है या बूंदी। 

रानी ने कहा - बूंदी। 


इस बात पर महाराणा लाखा नाराज हो गए और उन्होंने भोजन छोड़ दिया, और महल से बाहर आकर सेना को आदेश दिया कि बूंदी पर आक्रमण किया जाए। 


सेनापति ने पूछा, महाराज, अभी कुछ दिन पहले ही तो आपने बूंदी की राजकुमारी से विवाह किया है, और अभी आप बूंदी पर आक्रमण करना चाहते हैं, इसका क्या कारण है। महाराणा बोले, रानी सा को लगता है, बूंदी चित्तौड़ से अधिक सुंदर है, इसलिए हम बूंदी पर आक्रमण करके बूंदी को नष्ट कर देंगे, जिसके बाद चित्तौड़ से सुन्दर कुछ नहीं बचेगा।  


राणा के सामंतो ने उन्हें समझाया, कि इतनी छोटी सी बात पर आक्रमण करना उचित नहीं है। तब राणा लाखा बोले कि मैंने प्रण लिया है, कि जब तक बूंदी के किले को गिराया नहीं जाएगा, तब तक मैं भोजन और जल ग्रहण नहीं करूंगा। 

महाराणा लाखा की इस जिद को सुनकर उनके सामंतों ने उन्हें बहुत समझाया, कि इतनी शीघ्रता में बूंदी राज्य के वीर हाड़ा राजपूतों से युद्ध करना और उन पर विजय प्राप्त करना आसान नहीं है। परन्तु महाराणा लाखा अपने प्रण से पीछे हटने वाले नहीं थे। 


अतः मेवाड़ के सामन्तो ने महाराणा लाखा को एक बीच का मार्ग सुझाया, कि चितौड़ के किले के बाहर बूंदी का एक मिटटी का प्रतीकात्मक नकली किला बनवाकर उस पर आक्रमण कर उसे जीत लेते है। बूंदी के नकली किले पर विजय हासिल करके तथा उसे गिराकर आप अपना प्रण पूरा कर सकते है। महाराणा ने उनकी यह बात मान ली।इसके बाद चितौड़ के किले के बाहर मिटटी से बूंदी का एक प्रतीकात्मक किला बनाया गया। 


महाराणा लाखा अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए, अपनी पूरी सेना के साथ नकली बूंदी के किले को जीतने के लिए आगे बढे। तभी अचानक एक पैना तीर महाराणा लाखा के घोड़े को आकर लगा, और घोड़ा वहीं गिर गया। महाराणा लाखा गिरते-गिरते बचे, और घोड़े से कूद कर एक तरफ जाकर खड़े हो गए। तभी एक और तीर उड़ता हुआ आया, और महाराणा के एक सैनिक के कंधे पर जा लगा। किसी को समझ नहीं आ रहा था, की आखिर कौन बूंदी के इस नकली किले की रक्षा कर रहा है।  


बिना देर किये महाराणा ने एक जाँच दस्ते को बूंदी के नकली किले की ओर रवाना किया। बूंदी के नकली किले की तरफ जाकर दूत ने देखा, कि वहां एक नौजवान केसरिया वस्त्रो में सुसज्जित होकर, अपने कुछ मुट्ठी भर साथियों सहित, अस्त्र शस्त्रों को धारण किये हुए, उस नकली किले की रक्षा हेतु मौर्चा बांधे खड़ा है। 


यह नौजवान बूंदी का राजकुमार कुंभा हाड़ा था, जो हाड़ी रानी का छोटा भाई था। हाड़ा राजपूतों में यह प्रथा थी, की बहन के विवाह के समय उसका कोई भाई उसके साथ ससुराल जाता था, और कुछ दिनों तक वहीं रहता था। हाड़ी रानी का यह भाई विवाह के समय उसके साथ यहाँ आया हुआ था। जब उसने सुना की मेवाड़ के महाराणा बूंदी का प्रतीकात्मक किला गिराने वाले है, तो वह अपने कुछ मित्रो को साथ लेकर, उस बूंदी के नकली किले की रक्षा करने पहुंच गया।  


जाँच दस्ते ने वापस लौटकर महाराणा लाखा को सूचना दी, की बूंदी के राजकुमार कुंभा हाड़ा अपने कुछ मित्रो के साथ इस बूंदी के नकली किले की रक्षा कर रहें है। यह सुनकर महाराणा लाखा के कुछ सामंत कुंभा हाड़ा के पास पहुंचे और उन्हें समझाया, की आप तो महाराणा के संबंधी है, उनका हित चाहने वाले है। यदि महाराणा का प्रण पूरा नहीं हुआ तो बिना अन्न जल उनके जीवन पर संकट आ सकता है, इसलिए आप यहाँ से हट जाओ और महाराणा को नकली बूंदी पर प्रतीकात्मक विजय प्राप्त कर अपने प्रण को पूरा करने दो। 


तब कुम्भा हाड़ा ने कहा – मैं निसंदेह महाराणा का संबंधी हूँ, और उनका हित चाहता हूँ। इसलिए मैंने महाराणा के घोड़े को तीर मारा है, ना की महाराणा को। मैं एक हाड़ा राजपूत हूँ, बूंदी मेरे हाड़ा वंश की प्रतिष्ठा से जुडा है, अतः आप महाराणा से कहिये, बूंदी के किले को गिराने का विचार त्याग दे। जब तक एक भी हाड़ा राजपूत ज़िंदा है, बूंदी का किला नहीं गिराया जा सकता। मेरे लिए यह नकली बूंदी का किला भी असली किले से कम नहीं है।


महाराणा के सेनापति और सामंतो ने राजकुमार कुम्भा को समझाया, आप चार पांच लोग मिलकर इतनी बड़ी सेना के सामने, इस किले की रक्षा नहीं कर सकते। इसलिए इस नकली किले की रक्षा के लिए व्यर्थ युद्ध करने से कोई लाभ नहीं। राजकुमार कुम्भा ने कहा - बूंदी का किला हम हाड़ा राजपूतों के आत्मसम्मान का प्रतीक है, आप मेरे जीवित रहते मेरी आँखों के सामने, यह बूंदी का किला नहीं गिरा सकते। महाराणा से कहिये, यदि उन्हें अपना प्रण पूरा करना है, तो मुझसे युद्ध करे।मेरे वीरगति को प्राप्त हो जाने के बाद ही महाराणा इस किले को गिरा सकते है, अन्यथा नहीं। 


राजकुमार कुम्भा हाड़ा को बहुत समझाया गया, की व्यर्थ हट छोड़ दे, और महाराणा को अपना प्रण पूरा करने दे। कुम्भा हाड़ा की बहन हाड़ी रानी ने भी अपने भाई को बहुत समझाया, परन्तु वह नहीं माना। अंत में महाराणा लाखा राजकुमार कुम्भा हाड़ा से युद्ध करने के लिए विवश हो गए।

 

अब युद्ध शुरू हो चुका था। राजकुमार कुम्भा और उसके साथियों ने अत्यंत वीरतापूर्वक युद्ध किया। दोनों तरफ से तीरों की बौछारें हुई, जहाँ एक ओर  मेवाड़ के कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और सैकड़ों घायल हुए, वहीँ दूसरी तरफ हाड़ाओं की देशभक्ति व उनकी मान प्रतिष्ठा की रक्षा हुई। परन्तु यह युद्ध ज्यादा देर न हो सका। कुम्भा हाड़ा व उसके साथी लड़ते लड़ते अपनी वीरता दिखलाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। 


इसके बाद महाराणा लाखा ने बूँदी के नकली किले को गिराकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। इस युद्ध को कुम्भा हाड़ा, और उनके मित्रो के जैसे वीर और देशभक्त व्यक्तियों के लिए याद किया जाता है, जो अपनी आँखों के सामने अपनी प्रतीकात्मक मातृभूमि को भी गिरते हुए नहीं देख सकते थे। उन्होंने अपनी प्रतीकात्मक मातृभूमि की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। ऐसे देश भक्त वीरों को हम शत शत नमन करते है। 


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