राजस्थान के दानवीर भैरूसिंह भाटी की कहानी Hindi Story in Hindi
एक समय की बात है, जोधपुर में एक राजा हुए, जिनका नाम मानसिंह था। महाराज मानसिंह तलवार और कलम के धनी थे। जब वह युद्ध में तलवार चलाते, तो उनका पराक्रम देखकर शत्रु रण छोड़ कर भाग जाते, और जब उनके हाथों में कलम आती, तो वे सुंदर-सुंदर भजनों और कविताओं की रचना करते। उनके द्वारा रचित कई छंद और कवितायेँ आज भी बहुत प्रसिद्द हैं।
महाराज मानसिंह के तीन रानियां थी, परंतु उनके कोई पुत्र नहीं था, केवल पुत्रियां ही थी। एक दिन राजा मानसिंह अपने दरबार में बैठे हुए अपने मंत्रियों से बातचीत कर रहे थे। उनके दरबार में एक चारण कवि थे, वे गंभीर मुद्रा में बैठे हुए विचार कर रहे थे। राजा मानसिंह ने उनसे पूछा, कविराज, आप इतने चिंतित क्यों दिखाई दे रहे हैं। कवि बोले, महाराज मैं मारवाड़ के भविष्य को लेकर चिंतित हूँ।Hindi Story in Hindi
Rajasthan Ke Daanveer ki Kahani |
महाराज ने पूछा, क्या कारण है आपकी चिंता का। कवि बोले, महाराज आपके कोई पुत्र संतान नहीं है, इसलिए आप के बाद मारवाड़ का अगला राजा कौन होगा, इसको लेकर मैं क्या सभी देशवासी चिंतित हैं। महाराज बोले यह तो प्रभु की इच्छा है, यदि बेटा होना होगा तो हो जाएगा, और अगर नहीं होगा तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। कवि बोले महाराज यदि आप हमारी सलाह माने तो निश्चित ही आपके पुत्र संतान उत्पन्न हो सकती है।
महाराज बोले, अवश्य बताइए। कवि बोले, महाराज पोखरण के पास में एक भाटियों का गांव है, वे लोग बहुत गरीब है। वहां की एक सुंदर सुशील लड़की है, यदि आप वहां विवाह कर लें, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, आपके निश्चित ही पुत्र संतान उत्पन्न होगी।
महाराज मानसिंह राजी हो गए, अगले दिन कवि के बताए हुए घर में महाराज मानसिंह के विवाह का प्रस्ताव भेजा गया। मारवाड़ के महाराज का विवाह प्रस्ताव आने पर सभी लोग सहर्ष विवाह के लिए राजी हो गए। शुभ तिथि देखकर विवाह निश्चित किया गया, और नियत तिथि पर विवाह संपन्न हो गया। इस प्रकार एक गरीब परिवार की लड़की, विवाह के पश्चात रानी बनकर जोधपुर के राजमहल पहुंच गई। वह एक बहुत ही समझदार लड़की थी।
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भाटियों के यहां एक प्रथा थी, की विवाह के बाद बहन का भाई बहन के साथ ही उसके ससुराल जाता है, और कुछ समय तक वही रूकता है। उस लड़की का एक भाई था, जिसका नाम भैरूसिंह था। वह भी अपनी बहन के साथ राजमहल में आ गया। भैरूसिंह भी एक साधारण ग्रामीण व्यक्ति था, वह पहली बार ही किसी राज महल में आया था।
महाराज के विवाह के भोज में नवविवाहित रानी के भाई, महाराज के भाइयों और अन्य रिश्तेदारों के साथ बैठे। एक साधारण ग्रामीण व्यक्ति को अपने साथ भोज में बैठा देखकर, राजा के रिश्तेदार भैरूसिंह का उपहास करने लगे। भैरूसिंह को गुस्सा तो बहुत आया पर वह उनको कुछ कह ना सके। रिवाज के अनुसार भैरूसिंह को कुछ दिनों तक उसी राजमहल में रहना था। इसी बीच राजा के भाई और परिजन भैरूसिंह को किसी ना किसी बात को लेकर परेशान किया करते थे, और उनका मजाक उड़ाया करते थे।
एक दिन भैरूसिंह के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने राजा के भाइयों को खरी-खोटी सुना दी। इस पर राजा के भाई बोले, यह तो हमारे महाराज ने तुम्हारी बहन से शादी कर ली, इसलिए हम तुम्हें अपने पास बैठाते हैं, नहीं तो तुम जैसे लोगों की औकात नहीं कि तुम राज महल में कदम भी रख सको। यह बात सुनकर भैरूसिंह को बहुत बुरा लगा। भैरूसिंह ने जाकर अपनी बहन को यह बात बताई, कि राजा के रिश्तेदार उससे ऐसा व्यवहार करते हैं। रानी बोली, भैया तुम चिंता मत करो, मैं इस बारे में महाराज से बात करूंगी।
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उस दिन जब राजा मानसिंह आए तो रानी रूठी हुई थी, महाराज मानसिंह ने उनसे पूछा, क्या बात है रानीसा आप क्यों रूठी हुई हैं। रानी बोली, महाराज आपके भाई मेरे भाई के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, क्योंकि हम लोग गरीब हैं। महाराज यदि आपको हमारी गरीबी से इतनी ही दिक्कत है, तो आपने मुझसे विवाह ही क्यों किया। हम तो आपके पास रिश्ता लेकर नहीं आये थे, आप ही ने हमारे पास विवाह का प्रस्ताव भेजा था। क्या आपने हमारी गरीबी का मजाक उड़ाने के लिए हमसे विवाह किया है।
महाराज बोले, राणीसा मैंने तो कभी आपके भाई का अपमान नहीं किया, और यदि मेरे भाई उनका अपमान करते है, तो मैं उन्हें अच्छे से समझा दूंगा, आगे से वे लोग ऐसा नहीं करेंगे। इसके अलावा, मैं तो केवल यही कर सकता हूँ, कि आपके भाई को धन दे दूं, जिससे वह अपनी गरीबी दूर कर सकते हैं, फिर उन्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। यह कहकर महाराज ने अपने खजांची को बुलाया और उसे आदेश दिया, की आज के बाद भैरूसिंह राजकोष से जितना भी धन ले जाना चाहें, उन्हें ले जाने दें, कोई उन्हें कुछ नहीं कहेगा।
इसके बाद रानी ने अपने भाई भैरूसिंह को बुलाया और कहा भाई तुम्हें जितना भी धन चाहिए तुम राजकोष से ले जाओ, तुम्हें कोई भी नहीं रोकेगा। परंतु एक बात का हमेशा ध्यान रखना, इस धन का इस्तेमाल अपने घर में बिल्कुल मत करना। भैरूसिंह बोले, तो फिर मैं इस धन का क्या करूंगा। रानी बोली, तुम इस धन को दान करना, गरीबों में बांटना, गरीब कन्याओं का विवाह करवाना, ब्राह्मणों को दान देना, गौशालाएं बनवाना, इस प्रकार जो भी गरीब दिखे उसकी मदद करना, परंतु इस धन का उपयोग अपने लिए और अपने घर-परिवार में बिल्कुल मत करना।
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इसके बाद भैरूसिंह भाटी ने राजकोष से धन ले जाकर बांटना शुरू किया। वह मारवाड़ से धन लेकर जाते और मार्ग में उन्हें जो भी गरीब निस्सहाय दिखता उसे धन दे देते। भैरूसिंह भाटी अपने साथ कई ऊंटों का काफिला लेकर चलते थे, जिन पर वे सोने चांदी के सिक्के लाद कर रखा करते थे। जहां से भी भैरूसिंह भाटी का काफिला निकलता, लोग उन्हें आंखें फाड़-फाड़ कर देखते थे। जिस भी गांव में भैरूसिंह रुकते थे, वहां के गरीब और निस्सहाय लोगों को निहाल कर देते थे।
उन्होंने कई मंदिरों के लिए दान दिए, बहुत सी गौशालाएं बनवाई, अनगिनत गरीब
लड़कियों की शादी करवाई, गरीब ब्राह्मणों को दान किया। उन्होंने अपने जीवन काल
में इतना दान दिया, कि वह दानवीरता की मिसाल बन चुके थे। भैरूसिंह के लिए कहा
जाता था, कि उनके पास गया हुआ कोई भी आदमी खाली हाथ वापस नहीं आता था।
भैरूसिंह मारवाड़ से हर महीने बहुत अधिक धन लेकर आते थे, परन्तु महाराज मानसिंह भी अपने वचन के पक्के थे, इसलिए उन्होंने कभी भी भैरूसिंह पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया। कालांतर में महाराज मानसिंह को भाटी रानी से एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। परन्तु शायद महाराज मानसिंह के भाग्य में पुत्र का सुख नहीं लिखा था, इसलिए बालपन में ही उस बालक की मृत्यु हो गयी।
भैरूसिंह की दानवीरता के कई किस्से पूरे राजस्थान में मशहूर थे। ऐसे ही एक दिन भैरूसिंह ऊंट पर बैठकर कहीं जा रहे थे, मार्ग में उन्हें एक व्यक्ति दिखा, वह खेजड़ी के पेड़ पर चढ़कर उसकी पत्तियां झाड़ रहा था। भैरूसिंह ने उस व्यक्ति से पूछा, कि तुम इस खेजड़ी के पत्ते क्यों झाड़ रहे हो। वह व्यक्ति बोला, मैं भैरूसिंह भाटी के पास जा रहा हूं, मैं उनसे ऊंट मांग कर लाऊंगा। जब मैं ऊंट लेकर आऊंगा, तो उसे आते समय भूख लगेगी, इसीलिए मैं ऊंट के लिए यहां पर खेजड़ी के पत्ते इकट्ठे करके जा रहा हूं।
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भैरूसिंह ने उससे पूछा, कि तुम्हें इतना विश्वास कैसे हैं, कि भैरूसिंह तुम्हें जाते ही ऊंट दे देगा। वह व्यक्ति बोला, तुम भैरव सिंह को नहीं जानते, वह इतना बड़ा दानवीर है, कि उसके पास आज तक जो भी गया भैरव सिंह ने उसे कभी मना नहीं किया। उस व्यक्ति की बातें सुनकर भैरूसिंह खुश हो गए। भैरूसिंह ऊंट से नीचे उतरे और कहा, मैं ही भैरूसिंह हूं, और यह लो मेरा ऊंट इसे तुम रख लो। भैरूसिंह उस व्यक्ति को अपना ऊंट देकर पैदल ही अपने घर के लिए रवाना हो गए।
ऐसे ही एक बार भैरूसिंह के साले की शादी थी, भैरूसिंह की पत्नी गरीबी में ही अपना जीवन यापन किया करती थी, क्योकि भैरूसिंह राजकोष से लाया गया धन अपने घर में नहीं देते थे। इसलिए भैरूसिंह की पत्नी के पास शादी में पहनने के लिए नए कपड़े और सिंगार के लिए गहने नहीं थे। उसने अपने पति भैरूसिंह से कहा, आप सारी दुनिया को इतना दान करते हैं, थोड़ा बहुत घर में भी खर्च किया कीजिए, मेरे भाई का ब्याह है, मुझे भी नए कपड़े और कुछ गहने दिलवा दीजिए, ताकि मैं भी अपने पीहर में थोड़ी अच्छी दिखूं।
भैरव सिंह ने कहा, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, जीजी बाई ने कहा है, यह धन केवल बांटने के लिए है, इसे घर में खर्च नहीं कर सकते। भैरव सिंह की पत्नी बोली ठीक है, मुझे नए कपड़े मत दिलाओ, परंतु मेरे भाई के ब्याह में समय पर पहुंच जाना। भैरूसिंह ने कहा, ठीक है मैं समय पर आ जाऊंगा, ऐसा कहकर भैरूसिंह चले गए। भैरूसिंह की पत्नी को नए कपड़ों के बिना ही भाई के ब्याह में जाना पड़ा।
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पीहर पहुंचकर भैरव सिंह की पत्नी ने देखा, भाई के ब्याह की जोर शोर से तैयारियां हो रही थी। सभी रिश्तेदार आए हुए थे, सभी ने सुंदर-सुंदर वस्त्र पहने हुए थे, सभी एक दूसरे के वस्त्रों की तारीफ कर रहे थे। संगीतकार संगीत गा रहे थे, ढोली ढोल बजा रहे थे, लोग संगीत की धुन पर नाच रहे थे, शहनाइयां बज रही थी, लेकिन ऐसे माहौल में भैरूसिंह की पत्नी जो घर के पुराने कपड़े पहने थी, बहुत असहज महसूस कर रही थी, इसलिए वह चुपचाप एक कोने में गुमसुम बैठी हुई थी।
उसके पास एक बूढ़ी महिला बैठी थी, उसने पूछा, तुम यहां कोने में गुमसुम क्यों बैठी हो, तुम्हारे भाई का ब्याह है, और तुमने अभी तक अच्छे वस्त्र और गहने भी नहीं पहने, सिंगार भी नहीं किया और तुम्हारे पति भी नहीं दिखाई दे रहे, क्या हुआ वे तुम्हारे साथ नहीं आए, क्या तुम्हारी उनसे बनती नहीं। भैरूसिंह की पत्नी फीके मन से बोली, मेरी अपने पति से बहुत अच्छी बनती है, वह शाम तक शादी में आने वाले हैं, और मैंने यह जो कपड़े पहने हैं, यह नए ही तो है, इनमें क्या बुराई है, और मेरे सबसे कीमती गहने तो मेरे पति खुद है, उनके रहते मुझे किसी अन्य गहने की जरुरत नहीं।
इतने में लोगों का शोर सुनाई दिया, भैरूसिंह आ रहे हैं, यह सुनकर सभी संगीत बजाने वाले, नाचने गाने वाले, ढोल बजाने वाले, शहनाई बजाने वाले, सभी उठकर बाहर की ओर भागे, और भैरव सिंह के स्वागत में जाकर खड़े हो गए। भैरूसिंह ऊँटों पर सोने चांदी के बोरे लाद कर ला रहे थे, और दोनों हाथों से धन लुटाते आ रहे थे। शादी के घर की पूरी महफिल उठ कर भैरूसिंह का स्वागत करने चली गई।
भैरूसिंह ने अपने ससुराल में सभी को इतना धन लुटाया, की उनकी कई पीढ़ियों का
इंतजाम हो गया। घर के दरवाजे पर पहुंचते-पहुंचते भैरव सिंह का सारा धन खत्म हो
गया। दरवाजे पर पहुंचकर जब भैरूसिंह ऊंट से उतरे तो उनकी सास ने आरती का
थाल लेकर उनका स्वागत किया। उसी समय किसी ने भैरूसिंह की शान में एक दोहा
बोला, भैरूसिंह के पास उसे देने के लिए कुछ नहीं था, तो भैरों सिंह ने
अपने कान के सोने के गोखरू उतारे और उस व्यक्ति को दे दिए।
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भैरूसिंह भाटी के विषय में एक दोहा कहा जाता था, "समुंदर सूखे ध्रुव डिगे, पच्छम उगै भाण, जै भाटी भैरू नटे, उलट पडै आसमान" इसका मतलब समुंदर सूख सकता है, ध्रुव तारा अपनी जगह से हट सकता है, सूरज पश्चिम से उग सकता है, लेकिन भैरव सिंह किसी को कुछ देने से मना नहीं कर सकता।जिस दिन भैरूसिंह भाटी किसी को कुछ देने से मना कर देगा, उस दिन आसमान उलट जायेगा।
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