मौत के बाद सिमा पर पहरा देती है इस सैनिक की आत्मा Hindi Kahaniyan
अधिकतर लोग आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते, परन्तु यह एक ऐसे भारतीय सैनिक की आत्मा की एक सच्ची कहानी है, जो मरने के बाद भी देश की सरहदों की रखवाली कर रहा है। इस सैनिक की आत्मा के अस्तित्व को भारतीय सेना ने भी स्वीकार किया है। यह सैनिक सन 1968 में भारत-चीन बॉर्डर पर ड्यूटी करते समय शहीद हो गया था, इस सैनिक के दिल में देशभक्ति का भाव इस हद तक कूट-कूट कर भरा हुआ था, की मरने के बाद भी उन्होंने देश की सेवा करना नहीं छोड़ा और आज भी इस सैनिक की आत्मा भारत-चीन बॉर्डर पर सरहद की पहरेदारी करती है। भारतीय सेना ने भी इस सैनिक की आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार किया और इस आत्मा को एक सैनिक का दर्जा देते हुए वे सभी सम्मान और सुविधाएं प्रदान की जो एक सैनिक का अधिकार होता है। यह कहानी है जांबाज सिपाही हरभजन सिंह की जिन्हें आज बाबा हरभजन सिंह के नाम से जाना जाता है।
हरभजन सिंह का जन्म एक सिख परिवार में 30 अगस्त सन 1946 में सरदाना नाम के गाँव में हुआ था, वर्तमान में यह गाँव पाकिस्तान में स्थित है। 20 वर्ष की आयु होने पर सन 1966 में हरभजन सिंह भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट की 24 वीं बटालियन में बतौर सिपाही भर्ती हो गए। जिसके बाद उनकी पोस्टिंग सिक्किम राज्य में भारत-चीन बॉर्डर पर नाथुला दर्रे पर कर दी गयी। यह इलाका समुद्र तल से लगभग 13200 फ़ीट की उचाई पर स्थित है, वर्ष के अधिकांश समय यह इलाका बर्फ की मोटी परत से ढका रहता है।Hindi Kahaniyan
4 अक्टूबर 1968 के दिन हरभजन सिंह घोड़ों के एक काफिले पर सामान लादकर डोंगचुईला से अपनी पोस्ट की तरफ लौट रहे थे। भयानक ठंड का मौसम था चारों तरफ बर्फ़बारी भी होने लगी। अचानक पहाड़ी रास्तों पर उनका संतुलन बिगड़ जाता है और वे घोड़े समेत बर्फीली नदी में गिर जाते है। पहाड़ी से नीचे नदी में गिरने के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। नदी के तेज बहाव में उनका शरीर बहकर घटना स्थल से 2 किलोमीटर दूर पहुंच जाता है।
जब हरभजन सिंह समय से अपनी पोस्ट पर नहीं पहुंचे तब सेना ने उनकी खोज शुरू कर दी, बहुत ढूंढ़ने पर भी जब हरभजन सिंह नहीं मिले तब सेना को लगा की हरभजन सिंह अपनी ड्यूटी से बचने के लिए भाग गए है। इसके बाद सेना ने हरभजन सिंह को भगोड़ा घोषित कर दिया। कुछ दिनों के बाद हरभजन सिंह की आत्मा ने अपने साथी को सपने में बताया की उसकी मृत्यु हो चुकी है और उसका शरीर इस स्थान पर फंसा हुआ है। सुबह होने पर जब साथी सैनिकों ने उस जगह पर हरभजन सिंह की तलाश की तो उन्हें उसी जगह पर हरभजन सिंह का शव मिल गया, शव के साथ ही उनकी राइफल भी मिल गयी। सेना ने गलती से हरभजन सिंह को भगौड़ा मान लिया था, उनका शव मिल जाने के बाद सेना ने अपनी गलती सुधरी और पुरे सैनिक सम्मान के साथ हरभजन सिंह का अंतिम संस्कार किया गया। मृत्यु के समय हरभजन सिंह की आयु मात्र 22 वर्ष की थी।
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कुछ समय बाद हरभजन सिंह की आत्मा फिर से अपने साथी सैनिक के सपने में आयी और कहा मेरा सिर्फ शरीर गया है लेकिन मेरी आत्मा सिमा पर ड्यूटी करती रहेगी। साथी सैनिकों ने इस सपने की बात को अपना वहम समझा और इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन कुछ दिनों के बाद उन साथी सैनिकों के साथ कुछ अजीब घटनाएं होने लगी जैसे यदि किसी सैनिक से कोई गलती होने वाली होती या उनके साथ कोई अनहोनी घटना होने वाली होती तो हरभजन सिंह की आत्मा उन्हें पहले ही सपने में आकर आगाह कर देती थी और वह बात बिलकुल सही साबित होती थी। यदि कोई सैनिक ड्यूटी के दौरान लापरवाही करता तो उनकी आत्मा उसे तुरंत सचेत कर देती थी। भारतीय सैनिको को हमेशा यह अहसास होता था की एक अद्रश्य सैनिक उनके साथ सिमा की रखवाली कर रहा है। इस प्रकार हरभजन सिंह भारतीय सैनिकों के लिए बाबा हरभजन सिंह बन चुके थे।
जब यह बात फैलने लगी तब सेना के उच्च अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की और वे इसे सत्य पाकर हैरान रह गए। बाबा हरभजन सिंह की आत्मा चीन की तरफ से की जाने वाली किसी भी कार्यवाही की सुचना भारतीय सेना को 72 घंटे पहले ही दे देती थी। यदि भारतीय सेना को चीनी सेना का कोई मूवमेंट पसंद नहीं आता था तो हरभजन सिंह की आत्मा चीनी सैनिकों को भी इस बारे में अवगत करा देती थी। कई बार चीनी सैनिकों ने भारतीय सेना के अधिकारीयों से यह शिकायत की थी की आपकी सेना का एक जवान रात को घोड़े पर सवार होकर सिमा पर गश्त लगाता है। ये बाबा हरभजन सिंह ही थे जो रत में सिमा पर पहरा दे रहे थे। इस प्रकार चीनी सैनिक भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा के अस्तित्व पर पूर्ण विश्वाश करने लगे।
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इसके बाद सेना ने हरभजन सिंह की आत्मा को ड्यूटी पर तैनात सिपाही का दर्जा दिया और उन्हें वे सभी सुविधाएँ प्रदान की जो एक सैनिक को दी जाती है। सेना ने उनके बंकर को मंदिर का रूप दे दिया, बंकर में उनके कपडे, वर्दी, जूते, बिस्तर और अन्य सामान रख दिए गए। बाबा हरभजन सिंह को आम सैनिकों की तरह तनख्वा, बोनस, प्रमोशन, छुट्टी, भोजन जैसी सभी सुविधाएँ दी जाने लगी। इसके बाद उन्हें भारत चीन सिमा पर होने वाली हर फ्लैग मीटिंग शामिल किया जाने लगा। मीटिंग में हरभजन के नाम से एक खली कुर्सी रखी जाती थी। सैनिकों को साल में दो महीने की छुट्टी के मिलते है इसी प्रकार बाबा हरभजन सिंह को भी दो महीनों के लिए उनके गाँव छुट्टी पर भेजा जाता था। उनके नाम से ट्रेन का टिकट बुक किया जाता था और सेना के दो जवान उनका सामान उनके गाँव छोड़कर आते थे, और इसी प्रकार उन्हें छुट्टी से वापस भी लाया जाता था। इन दो महीनों के दौरान बॉर्डर पर सेना के जवान हाई अलर्ट पर रहते थे क्योकि इस दौरान उन्हें बाबा हरभजन सिंह से कोई मदद नहीं मिलती थी। बाबा हरभजन सिंह को सेना के नियमों के अनुसार समय-समय पर प्रमोशन भी दिए जाते थे। बाबा हरभजन सिंह सैनिक के पद से से प्रमोट होते होते कैप्टन हरभजन सिंह बन चुके थे।
हर सैनिक समय आने पर रिटायर हो जाता है, इसी प्रकार कैप्टन बाबा हरभजन सिंह को भी 2005 में रिटायर किया जाना था परन्तु ड्यूटी के प्रति उनकी निष्ठा को देखते हुए उनका कार्यकाल एक साल और बढ़ा दिया गया। इस प्रकार 2006 में कैप्टन बाबा हरभजन रिटायर हो गए। रिटायरमेंट के बाद जब तक हरभजन सिंह की माताजी जीवित रहीं उन्हें हरभजन सिंह के नाम से पेंशन भी मिलती रही।
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इसके बाद सेना ने उनके नाम से एक भव्य और विशाल मंदिर का निर्माण करवाया और यहाँ उनकी मूर्ति स्थापित की गयी। इस मंदिर में बाबाजी का ऑफिस और बैडरूम बनाये गए हैं। रिटायरमेंट के बाद बाबा हमेशा के लिए अब इसी मंदिर में रहने लगे हैं। भारतीय सेना बाबा हरभजन सिंह के दोनों मंदिरों की देखरेख करती है। बाबाजी के कमरों की दोनों समय सफाई की जाती है। उन्हें चाय नाश्ता और भोजन समय-समय पर परोसा जाता है। बाबा हरभजन सिंह आज भी सिमा पर मुस्तैदी से ड्यूटी रहें है। सुबह जब उनके कमरे की सफाई की जाती है, तो उनके जूतों पर मिट्टी लगी मिलती है और उनके बिस्तर पर सलवटें दिखाई देती है जैसे इस बिस्तर पर कोई लेटा हो। उस इलाके में जब भी कोई नया सैनिक ड्यूटी जॉइन करने जाता है, तो सबसे पहले बाबाजी के मंदिर में माथा टेकता है और उनसे प्रार्थना करता है की बाबाजी सीमा पर उनकी रक्षा करें।
बाबा हरभजन सिंह के प्रति उनके भक्तों में गहरी आस्था है, इसलिए बाबाजी के मंदिर में भक्तों की भरी भीड़ उमड़ती है, सभी भक्तों की सुख सुविधाओं और देखरेख का जिम्मा भारतीय सेना ने उठा रखा है, बाबा के भक्त इस मंदिर में आकर अपनी मन्नत कॉपी में लिखकर जाते है, मान्यता के अनुसार बाबाजी ड्यूटी से लौटकर उनकी समस्याएँ पढ़ते है और उनकी मदद करते है। भक्त इस मंदिर में प्रसाद के रूप में पानी की बोतल चढ़ाते है।
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