एक सिद्ध संत का वरदान हिंदी कहानी - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

एक सिद्ध संत का वरदान हिंदी कहानी

एक सिद्ध संत का वरदान-हिंदी कहानी 

 

एक समय की बात है, एक गाँव में एक व्यक्ति अपनी पत्नी और लड़की के साथ रहता था। एक बार उनके गाँव में एक सिद्ध संत पधारे। उस व्यक्ति ने उन संत को अपने घर पर ठहराया और कुछ दिनों तक उनकी बहुत सेवा की। वह संत उस व्यक्ति की सेवा से बहुत प्रसन्न हुए। जाते समय संत ने उस व्यक्ति से कहा की मैं तुम्हारी सेवा भावना से बहुत प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ, इसलिए तुम मुझसे कोई वरदान मांग लो।

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वह व्यक्ति बहुत गरीब था, परन्तु वह धनवान बनना चाहता था। वरदान की बात सुनकर उस व्यक्ति के मन में लालच जाग गया। उसने कहा महाराज अगर आप मुझे कुछ देना चाहते हैं, तो मुझे ऐसा वरदान दीजिये, की मैं जिस भी चीज को छू लूँ वह सोने की बन जाये। 

संत बोले, इस वरदान की जगह कुछ और माँग, लो यह वरदान बहुत खतरनाक है, इससे तुम्हें बहुत परेशानी होगी। मैं तुम्हारा भला चाहता हूँ, इसलिए कह रहा हूँ, इसकी जगह कोई और वरदान मांग लो।  


वह व्यक्ति बोला महाराज मुझे तो यही वरदान चाहिए, अगर आप मुझे कुछ देना चाहते हैं, तो मुझे यही वरदान दीजिये। 

संत ने उस व्यक्ति को बहुत समझाया परन्तु वह व्यक्ति नहीं माना। अंत में संत ने उसे वरदान दे दिया, की तुम जिस भी वस्तु को छू लोगे वह सोने की बन जाएगी। यह वरदान देकर संत वहां से चले गए। 

 

वरदान पाकर वह व्यक्ति बहुत खुश हो गया, वरदान का परिक्षण करने के लिए उसने अपने पास पड़ी किसी चीज को छूकर देखा, वह चीज तुरंत सोने की बन गयी। यह देखकर वह व्यक्ति बहुत खुश हो गया, उसने अपने घर की बाहरी दीवार को छू लिया, छूते ही उसके घर की बाहरी दीवार सोने की हो गयी।


अपनी नई अर्जित शक्तियों से उत्साहित उस व्यक्ति ने हर तरह की चीजों को छूकर शुद्ध सोने में बदलना शुरू कर दिया।उसने अपने घर को छू लिया, छूते ही उसका घर सोने का हो गया, उसने अपना पलंग छू लिया वह भी सोने का हो गया। उसने अपने घर के सारे बर्तन छूकर सोने के बना दिए। 


जब उसके घर में सोने का बनाने लायक कुछ नहीं बचा, तो उसने अपने घर में उगे हुए पेड़ पौधों को छूकर सोने में बदलना शुरू कर दिया। उसके घर में एक विशाल आम का वृक्ष था, उसने उसे छू लिया। उसके छूते ही पूरा वृक्ष तने, डालियों, पत्तों और फलों के सहित सोने का बन गया। 


यह सब करते-करते जल्दी ही वह थक गया, और उसे भूख लग गयी। उसकी पत्नी उसके लिए सोने के थाल में भोजन लेकर आयी। उसने जैसे ही खाने के लिए रोटी उठाई, वह रोटी भी सोने की हो गयी। यह देखकर वह व्यक्ति घबरा गया, अब उसने खाने के लिए एक फल उठाया, वह फल भी सोने का बन गया। 

अब उस व्यक्ति को अहसास हुआ, की उसने यह वरदान मांगकर कितनी बड़ी गलती कर दी है। उसे लगा की अब शायद उसे भूख से ही मरना पड़ेगा। यह सोचकर वह व्यक्ति जोर-जोर से रोने लगा। 

 

अपने पति को रोता देख उसकी पत्नी उसे सांत्वना देने के लिए उसके पास आयी। जैसे ही उसकी पत्नी ने उसे छुआ वह भी सोने की बन गयी। यह देखकर उस व्यक्ति की रूह काँप गयी, और अब वह जोर-जोर से विलाप करने लगा और स्वयं को कोसने लगा। अब उसे उन संत की कही बात याद आने लगी, संत ने उसे बहुत समझाया था, की यह वरदान मत माँगो ,परन्तु वह नहीं माना। अब उसे अपने आप पर पछतावा होने लगा, परन्तु अब वह कुछ भी नहीं कर सकता था। 


उसे इस प्रकार रोता देखकर उसकी लड़की उसके पास आने लगी। यह देखकर वह व्यक्ति जोर से चिल्लाया, मेरे पास मत आओ नहीं तो तुम भी सोने की बन जाओगी। यह सुनकर उसकी लड़की वहीं ठहर गयी। 


तब उसकी बेटी ने कहा, पिताजी वह संत अभी हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं गए होंगे, उन्हें जाकर ढूंढो, अब वही हमारे इस संकट को दूर कर सकते है। बेटी की बात सुनकर वह व्यक्ति तुरंत उन संत को ढूंढ़ने निकल पड़ा। सारे दिन वह उन संत को ढूंढ़ता रहा। अंत में शाम को उसने देखा की वह संत एक पेड़ के निचे ध्यान में बैठे थे। वह व्यक्ति उनके पास पंहुचा और दूर से ही उन्हें प्रणाम किया। 


जब संत ने उसके आने का कारण पूछा, तो वह व्यक्ति जोर जोर से रोने लगा, और अपने घर की सारी घटना उनको कह सुनाई। संत बोले, बेटा, मैंने तो तुम्हें पहले ही कहा था, यह वरदान बहुत खतरनाक है, इसकी जगह कुछ और माँग लो, परन्तु तुम नहीं माने और लालच के वशीभूत होकर तुमने मुझसे यह वरदान मांग लिया। 

 

वह व्यक्ति बोला महाराज मुझे क्षमा कर दीजिये, मैं जल्दी से धनवान बनना चाहता था, इसलिए लालच में आकर मैंने बिना कुछ सोचे समझे आपसे यह वरदान माँग लिया। इस वरदान के कारण मेरी पत्नी सोने की बन गयी है, और मैं कुछ भोजन भी नहीं कर पा रहा हूँ, क्योकिं मेरे छूने से सब कुछ सोने का बन जा रहा है। इस प्रकार तो भूख से मेरी मृत्यु हो जाएगी। मुझे अब यह वरदान नहीं चाहिए, कृपया आप इसे वापस ले लीजिये।  


संत मुस्कुराये और बोले तुम्हे अपनी गलती का अहसास हो गया है, परन्तु तुमने एक बहुत अच्छा अवसर गवाँ दिया। तुम वरदान में मुझसे कुछ ऐसा माँग सकते थे, जिससे तुम अपना और सबका भला कर सकते थे। 

अब मैं अपना वरदान वापस लेता हूँ, अब तुम पहले की ही तरह एक साधारण व्यक्ति बन जाओगे, और तुम्हारी स्पर्श शक्ति ख़त्म हो जाएगी। और अब तक तुमने जो कुछ भी सोने का बनाया है, वह सबकुछ पहले जैसा हो जायेगा। यह कहकर वह संत पुनः ध्यान में बैठ गए। 

 

संत की बात सुनकर उस व्यक्ति को संतोष मिला, और उसने अपने पास पड़े पत्थर को छूकर देखा। इस बार वह पत्थर सोने का नहीं बना था। यह देखकर वह व्यक्ति बहुत खुश हो गया, और दौड़कर अपने घर पंहुचा। घर पहुंचकर उसने देखा की उसका घर जो पहले सोने का था अब पहले जैसा हो चुका था। उसके घर में सब कुछ पहले जैसा हो चुका था। वह घर के भीतर गया, अब उसकी पत्नी भी पहले जैसी हो चुकी थी, और उसने जो-जो चीजें सोने की बनाई थी, वह सब पहले जैसी हो चुकी थी। 

 

उसके घर पहुंचते ही उसकी पत्नी और बच्ची दौड़कर उसके पास आये। वह व्यक्ति उन्हें गले लगाकर बहुत खुश हुआ। अब सबकुछ पहले जैसा हो चुका था। इस घटना के बाद उस व्यक्ति ने सबक लिया, और जीवन में कभी लालच ना करने की और जो कुछ उसके पास है, उसी में संतोष रखने की कसम खायी। इसके घटना के बाद वे सभी ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन यापन करने लगे।

 

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