एक अंग्रेज इंजीनियर और भगवान श्री कृष्ण की कहानी - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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मंगलवार, 1 नवंबर 2022

एक अंग्रेज इंजीनियर और भगवान श्री कृष्ण की कहानी

एक अंग्रेज इंजीनियर और भगवान श्री कृष्ण की कहानी

 

यह घटना उस समय की है, जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। एक बार उदासी संप्रदाय के महान संत स्वामी रमेश चंद्र जी बिहार की यात्रा पर थे। मार्ग में उन्होंने एक अंग्रेज को सन्यासियों के वस्त्र में देखा। एक अंग्रेज व्यक्ति को संन्यासियों के वस्त्र धारण किए हुए देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने उस अंग्रेज के पास जाकर उससे पूछा, श्रीमान आपने यह सन्यासियों का वेश क्यों धारण किया है। 


ऐसा पूछते ही उस अंग्रेज की आँखों में आँसू आ गए। स्वामी जी ने उससे पूछा, क्या बात है, रोते क्यों हो। तब वह अंग्रेज बोला, मेरा बहुत सारा समय यूं ही व्यर्थ हो गया, मेरा जन्म भारत में नहीं हुआ, इसका मुझे बहुत अफसोस है। आगे उस अंग्रेज ने बताया उसके जीवन में जो यह परिवर्तन आया है, वह उस पर भगवान की एक विशेष कृपा है। स्वामी रमेश चंद्र जी ने उससे पूछा, क्या आप बता सकते हैं, कि आपके जीवन में ऐसी कौन सी घटना घटित हुई, जिसने आपके जीवन को परिवर्तित कर दिया।

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अंग्रेज इंजीनियर और भगवान श्री कृष्ण की कहानी

तब उस अंग्रेज ने बताया की मैं एक इंजीनियर था, मुझे इंग्लैंड से बिहार में एक बांध बनाने के लिए भेजा गया था।  उस बांध को बनाने की पूरी जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी। मैंने यहां पर आकर उस बाँध को बनाने का काम शुरू कर दिया। धीरे-धीरे बांध बनने लगा, बाँध अभी कमजोर ही था की एक दिन बहुत जोर से मूसलाधार बारिश होने लगी, वह बरसात इतनी तेज थी कि उसे देखकर मैं भयभीत हो गया। मुझे लगने लगा कि कहीं यह बांध बारिश के पानी के वेग से टूट न जाए। 

 

अगर यह बांध टूट गया, तो मेरे साथ साथ इंग्लैंड सरकार का भी नाम खराब हो जाएगा, और हमारे देश के नाम पर धब्बा लग जाएगा, कि वहां के लोग काम ठीक से नहीं करते हैं।बांध का निरीक्षण करने के लिए मैंने उसी बारिश में बांध पर जाने का फैसला किया। बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, और बांध में दरारे भी दिखाई देने लगी थी, उन्हें देखकर मेरा मन बहुत व्याकुल हो रहा था। मैं सोच रहा था, यदि यह बांध टूट जाएगा, तो मैं भी इस बांध के साथ ही बह जाऊँगा और अपने प्राणों का विसर्जन कर दूँगा। यह सोचकर मैं उस बांध की तरफ बढ़ा।

 

मार्ग में मैंने कुछ मजदूरों को एक छोटे से छप्पर में बैठे हुए देखा, वे सभी मजदूर एक छोटी सी मूर्ति के पास बैठकर बहुत ही मस्ती में भजन गा रहे थे। मैं उनके पास गया और उनसे पूछने लगा कि आप लोग क्या कर रहे हैं। उन मजदूरों ने बताया कि यह हमारे भगवान श्रीकृष्ण और श्री राधा जी है, हम इन से प्रार्थना करते हैं और यह हमारी प्रार्थना सुनकर हमारे सभी दुख दूर कर देते हैं।

 

मैंने उन मजदूरों से पूछा, क्या ये मेरा भी दुख दूर कर सकते हैं। मजदूर बोले यह सभी का दुख दूर करते हैं, यह हम सब के पालनहार हैं, इनका तो काम ही है सभी का दुख दूर करना। आप हाथ जोड़कर इनसे प्रार्थना कीजिए, यह आपकी भी पुकार अवश्य सुनेंगे। तब मैंने कहा, मुझे तो प्रार्थना करनी आती नहीं, इसलिए आप सब लोग मेरी तरफ से इनसे प्रार्थना कीजिए, की यह बांध टूटे नहीं, अगर इस बारिश में यह बांध टूट गया, तो मैं जी नहीं पाऊंगा। 

 

वे मजदूर बोले हम भी प्रार्थना करते हैं, और आप भी प्रार्थना कीजिए। इसके बाद मैं आंखें बंद करके भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा जी से प्रार्थना करने लगा। थोड़ी देर बाद जब वह सत्संग पूरा हुआ तब उन मजदूरों ने मुझसे कहा, आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए, भगवान सब भला करेंगे। मजदूरों की बातें सुनकर मुझे कुछ तसल्ली मिली, लेकिन कुछ देर बाद मैंने देखा कि शाम होने लगी थी, और अब तो बारिश भी पहले से तेज हो गई थी। ऐसी भीषण बारिश को देख कर मेरा दिल बैठा जा रहा था।  

 

इस बार मैंने पक्का निश्चय कर लिया था, की अब यदि यह बांध टूटने ही वाला है, तो मैं भी इस बाँध के साथ ही बह जाऊंगा, और इस बांध के साथ मेरा भी अंत हो जाएगा। यह सोच कर मैं उस घनघोर बारिश में उस बाँध के ऊपर चढ़ गया, और बांध के बीच में जाकर खड़ा हो गया। कुछ ही देर बाद मैंने देखा कि बांध के नीचे दो छोटे बालक मिट्टी से खेल रहे हैं, उन्हें इस प्रकार खेलता देख मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। उनमें से एक बालक गोरा था और एक बालक सावला था, जिसने मोर मुकुट पहन रखा था। 

 

मैंने उन दोनों बालकों को जोर से चिल्ला कर कहा, यहां से चले जाओ बांध के पीछे पानी बढ़ रहा है, यह बांध टूटने वाला है, तुम दोनों पानी में बह जाओगे। लेकिन वे दोनों बालक मेरी बात सुनने को तैयार नहीं थे, वे दोनों बालक मिट्टी उठा उठा कर बांध की दरारों में भर रहे थे। मैंने बार-बार चिल्लाकर उन दोनों बालकों को वहां से चले जाने के लिए कह रहा था, लेकिन वे दोनों बालक मेरी बात नहीं सुन रहे थे।   

 

तब मैंने बहुत जोर से मजदूरों को आवाज लगाई और कहा जल्दी से यहां पर आओ, देखो बांध के नीचे दो बालक खेल रहे हैं, उन्हें यहां से हटाओ। मेरी आवाज सुनकर सभी मजदूर दौड़ते हुए मेरे पास आए, जब उन्होंने बांध के नीचे देखा, तो उन्हें वहां पर कोई भी दिखाई नहीं दिया। मजदूर बोले, साहब, वहां बांध के नीचे तो कोई भी नहीं है, आप किसे हटाने के लिए कह रहे हैं। मैंने उनसे कहा कि क्या तुम्हें वहां नीचे दो बालक मिट्टी से खेलते हुए दिखाई नहीं दे रहे। मजदूर बोले, नहीं साहब, हमें वहां कोई भी दिखाई नहीं दे रहा। 


मैंने कहा ध्यान से देखो वहां दो छोटे बालक है, एक साँवला है और एक गोरा है और उन्होंने मोर मुकुट पहन रखा है। मजदूरों ने फिर से कहा, नहीं साहब, हमें वहां पर कोई बालक खेलते हुए नहीं दिखाई दे रहे। मैंने कहा ऐसा कैसे हो सकता है, जब वह बालक मुझे दिखाई दे रहे हैं, तो तुम सभी को क्यों दिखाई नहीं दे रहे। वे दोनों बालक मिट्टी उठा उठाकर बांध की दरारों में भर रहे हैं, यह तुम सभी को क्यों दिखाई नहीं दे रहा।  


मजदूरों को समझते देर नहीं लगी, वे बोले, साहब, लगता है भगवान ने आपकी प्रार्थना सुन ली है, वे दोनों बालक और कोई नहीं भगवान श्री कृष्ण और श्री बलराम जी हैं। यदि वे इस बांध की दरारों में मिट्टी भर रहे हैं, तो निश्चिंत हो जाइए, अब इस बांध को कुछ नहीं होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने आपकी प्रार्थना सुन ली है, तभी तो आपको उनके दर्शन हो रहे हैं, और हमें वह नहीं दिखाई दे रहे हैं। वे आपकी प्रार्थना सुनकर आपकी रक्षा करने आए हैं। 

 

मुझे उन मजदूरों की बातों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था। कुछ देर बाद मैंने देखा कि जहां वे दोनों बालक खेल रहे थे, वहां पर अचानक एक बहुत तेज प्रकाश हुआ और वे दोनों बालक गायब हो गए। यह चमत्कार देख मैं बेहोश हो गया। मेरे बेहोश होते ही वे सभी मजदूर मुझे उठा कर मुझे मेरे बंगले पर ले आए। जब मुझे होश आया तब तक सुबह हो चुकी थी, सुबह मुझे मालूम हुआ की पूरी रात बहुत ही तेज मूसलाधार बारिश हो रही थी, और ऐसी भीषण बारिश में भी वह अध-पका बांध जस का तस खड़ा था, उसे कुछ नहीं हुआ था। 

 

ऐसी भीषण बारिश में उस अध-पके बांध का टिके रहना असंभव था। यह भगवान् की कृपा ही थी, जिससे उस बांध को कुछ नहीं हुआ। इस घटना के बाद मैं विचार करने लगा की स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने मेरी प्रार्थना सुनी और मेरे बांध की रक्षा करने आए। इसके बाद मेरा सांसारिक जीवन से मोह भंग हो गया, और मैंने सब कुछ छोड़कर भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करने का निश्चय कर लिया। 


उसी दिन मैंने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपना सारा जीवन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित करने का निश्चय कर लिया। उस दिन के बाद मैं सब जगह भगवान श्री कृष्ण की खोज में रहता हूं, और मैं एक बार फिर से भगवान श्री कृष्ण की वही मोहक छवि देखना चाहता हूं। इसलिए मैं हर समय उन्हीं का भजन करता रहता हूं। भगवान श्री कृष्ण का भजन करके और उनका नाम लेकर मुझे अपार शांति का अनुभव होता है। ऐसा बताते बताते उस अंग्रेज की आंखें एक बार फिर से सजल हो गई। 


यह घटना भारत की आजादी से पहले की एक सच्ची घटना है, इससे हमें यह पता चलता है, की यदि हम भगवान को सच्चे हृदय से पुकारे तो भगवान अपने भक्तों का मान रखने किसी न किसी रूप में अवश्य आते हैं।

 

 

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