मार्कण्डेय ऋषि की कहानी जो संतों से आशीर्वाद पाकर अमर हो गए - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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सोमवार, 21 नवंबर 2022

मार्कण्डेय ऋषि की कहानी जो संतों से आशीर्वाद पाकर अमर हो गए

मार्कण्डेय ऋषि की कहानी जो संतों से आशीर्वाद पाकर अमर हो गए

 
एक समय की बात है, काशी में एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे, उनके कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। एक दिन भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए, और उनके सामने प्रकट होकर बोले, ब्राह्मण देव वरदान मांगिए। ब्राह्मण बोले, हे प्रभु आप तो जानते ही हैं, मेरे कोई संतान नहीं है, इसलिए मैं आपसे पुत्र प्राप्ति का वरदान चाहता हूं। 
 
भगवान शिव बोले, आपको सुपुत्र चाहिए या कुपुत्र। ब्राह्मण ने भगवान शिव से पूछा, इन दोनों में क्या अंतर है।  भगवान शिव बोले, सुपुत्र की आयु कम होगी परंतु उससे तुम्हें सुख प्राप्त होगा, लेकिन कुपुत्र की आयु लंबी होगी, परंतु वह तुम्हें सारे जीवन दुख देता रहेगा। ब्राह्मण ने सोचा सारे जीवन के दुख से, कुछ दिनों का सुख ही अच्छा, ब्राह्मण ने भगवान शिव से कहा, प्रभु आप मुझे सुपुत्र प्राप्ति का वरदान दीजिए। भगवान शिव बोले, तुम्हें सुपुत्र की प्राप्ति होगी, परंतु उसकी आयु केवल 5 वर्ष की होगी, यह कहकर भगवान शंकर अंतर्ध्यान हो गए। 

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कुछ समय पश्चात ब्राह्मण के घर में एक बालक ने जन्म लिया, वह बालक बहुत सुंदर था। ब्राह्मण उस बालक को देखकर खुश भी होते थे, और उसकी आयु के विषय में सोच कर दुखी भी होते थे। वह बालक बालक धीरे-धीरे बड़ा होने लगा, बालक के साथ-साथ ब्राह्मण देवता का दुख भी बढ़ता जा रहा था। जब वह बालक 4 वर्ष का हो गया, तब ब्राह्मण ने सोचा, बालक की आयु की वृद्धि के विषय में किसी संत से पूछना चाहिए। 

ब्राह्मण उस बालक को एक संत के पास लेकर गए, संत बोले, यदि इस बालक को किसी सिद्ध महात्मा का आशीर्वाद मिल जाए, तो इसकी आयु बढ़ सकती है। ब्राह्मण ने पूछा, महाराज ऐसे सिद्ध महात्मा मुझे कहां मिलेंगे। संत बोले, ऐसे ढूंढोगे तो तुम्हें सिद्ध महात्मा कहीं भी नहीं मिलेंगे, इसलिए तुम सभी को संतों सिद्ध मानना शुरू कर दो, और इस बालक को सभी का आशीर्वाद दिलवाओ। 
 
संत का कहना मान कर वह ब्राह्मण देवता अपने बालक को गंगा घाट पर ले गए, और वहीं पर एक कुटिया बनाकर बालक के साथ निवास करने लगे। गंगा घाट पर अनेकों महात्मा प्रतिदिन गंगा स्नान के लिए आते थे, ब्राह्मण ने अपने पुत्र से कहा, की तुम्हें यहां दिनभर में जितने भी महात्मा दिखाई पड़े, उन्हें साष्टांग प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लिया करो। 

वह बालक घाट पर आने वाले सभी महात्माओं को, स्त्री पुरुष सभी को साष्टांग प्रणाम करके आशीर्वाद लेने लगा, अब यह उस बालक का नित्य का नियम था, वह सारे दिन गंगा घाट पर आने वाले सभी लोगों को साष्टांग प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेता, और सभी लोग उसे ह्रदय से आशीर्वाद देते। इसी प्रकार उसका पाँचवाँ वर्ष लगभग पूरा होने को था। 
 
जब बालक की उम्र में केवल 3 दिन ही शेष रह गए, तो संयोगवश वहां पर सप्त ऋषि पधारे, बालक ने उन सभी को साष्टांग प्रणाम किया, सभी सातों ऋषियों ने बालक को चिरंजीवी भव अर्थात चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया। यह दृश्य देखकर उस बालक के पिता की आंखों में आंसू आ गए, वह उन ऋषियों से बोले, महाराज आप सभी ने इस बालक को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया है, परंतु इस बालक की आयु केवल 3 दिन और शेष है। 

सप्त ऋषियों ने पूछा, ब्राह्मण देवता आपको कैसे मालूम की इस बालक की आयु केवल 3 दिन ही शेष बची है। ब्राह्मण बोले, यह बालक किसी देवता के आशीर्वाद से उत्पन्न हुआ है, उन्होंने इसकी आयु केवल 5 वर्ष बताई है, जो अगले 3 दिन में पूरी हो जाएगी। ऋषियों ने पूछा उन देवता का नाम बताइए, ब्राह्मण बोले, मैं आपको उनका नाम नहीं बता सकता। 
 
अब सारे सप्तऋषि एक दूसरे का मुंह देखने लगे, उन्होंने सोचा, कि अब तो हमारा आशीर्वाद निष्फल हो जाएगा, ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए। सभी सप्तऋषियों ने आपस में निर्णय करके उन ब्राह्मण से कहा, यदि आप इस बालक का कल्याण चाहते हैं, तो इसे हमें दे दें। ब्राह्मण देवता बोले, ठीक है महाराज, यदि किसी भी प्रकार से इस बालक की उम्र बढ़ सके तो इसे आप ही ले जाइए। ब्राह्मण ने अपना ह्रदय कठोर करके अपने बालक को सप्तर्षियों के साथ भेज दिया। 
 
अगले दिन सप्तऋषि उस बालक को लेकर ब्रह्मा जी के यहां पहुंचे, पहले सप्तऋषियों ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया, ब्रह्माजी बोले, चिरंजीवी भव चिरंजीवी भव। इसके बाद उस बालक ने ब्रह्माजी को प्रणाम किया, ब्रह्माजी ने उस बालक को भी चिरंजीवी भव आशीर्वाद दिया। ब्रह्म वचन सुनकर सभी सप्तऋषि मुस्कुरा दिए, सभी ने सोचा, अब अपनी बला टली, क्योंकि अब तो ब्रह्माजी ने भी उस बालक को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दे दिया था। यदि अब उस बालक को कुछ भी होता है, तो ब्रह्मा जी का आशीर्वाद झूठा हो जाएगा। 
 
ब्रह्मा जी ने सप्त ऋषियों से मुस्कुराने का कारण पूछा। सप्तऋषि बोले, प्रभु, जिस बालक को आपने चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया है, उस बालक के पास केवल 2 दिन की आयु शेष बची है। अब तो ब्रह्मा जी का भी माथा ठनका, ब्रह्मा जी बोले, तो आप लोग इस बालक को यहां मेरे पास क्यों ले आए। सप्तऋषि बोले, प्रभु, हम भी कल इसे इसी प्रकार चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देकर फंस गए थे। हमें अपना आशीर्वाद सत्य करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था, इसलिए हमने इस बालक को आपका आशीर्वाद दिलवा दिया। अब आप जानें और आपका आशीर्वाद जाने। हम तो अपने आशीर्वाद से मुक्त हो गए। 
 
ब्रह्मा जी ने कुछ देर विचार किया, उन्होंने सोचा, अब तो इस बालक का भाग्य केवल भगवान शंकर ही बदल सकते हैं। ब्रह्मा जी ने सप्तर्षियों से कहा, आप इस बालक को यहीं मेरे पास छोड़ जाइए। अगले दिन ब्रह्मा जी उस बालक को भगवान शंकर के पास ले गए। ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर को प्रणाम किया, भगवान शंकर ने उन्हें आशीर्वाद दिया। इसके बाद उस बालक ने भगवान शंकर को साष्टांग प्रणाम किया, यह देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हो गए, और उन्होंने उस बालक को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दे दिया। यह सुनकर ब्रह्माजी प्रसन्न हो गए, क्योंकि अब ब्रह्मा जी का भार भगवान भोले शंकर ने ले लिया था। 
 
जब भगवान शंकर ने ब्रह्मा जी को हंसते देखा, तो उनसे पूछा, ब्रह्मा जी क्या बात है। ब्रह्मा जी बोले, भगवन इस बालक की आयु केवल 1 दिन शेष बची है, और आपने इसे चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया है। भगवान शिव ने पूछा, यह किसका बालक है, ब्रह्मा जी ने बताया, यह काशी के उस ब्राह्मण का बालक है। भगवान शिव भी मुस्कुरा दिए, और बोले, यह तो हमारे ही वरदान से उत्पन्न बालक है। 


ब्रह्मा जी बोले, प्रभु आपके वरदान से उत्पन्न बालक अब आप ही की शरण में है, अब आप ही इसकी रक्षा कीजिए। भगवान शिव बोले, ब्रह्मा जी आप इस बालक को यही छोड़ दीजिए, और अब आप अपने लोक को पधारें। ब्रह्मा जी उस बालक को भगवान शिव के पास छोड़कर चले गए। 
 
भगवान शिव उस बालक से बोले, बेटा तुम बिल्कुल मत डरो, यहां पर जो यह शिवलिंग है, तुम इसके समीप बैठकर ओम नमः शिवाय मन्त्र का जाप करो और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते रहो। बालक वैसा ही करता रहा, ओम नमः शिवाय मन्त्र का जाप करते-करते वह बालक ध्यान मग्न हो गया। जैसे ही उस बालक की आयु पूरी होने का समय हुआ, यमराज उस बालक के पास प्रकट हो गए, और उन्होंने उस बालक को अपने पाश में जकड़ लिया। इससे उस बालक का ध्यान भंग हो गया, और वह घबराकर उस शिवलिंग से लिपट गया, और जोर-जोर से ओम नमः शिवाय मन्त्र का जाप करने लगा। 
 
यह सब देख कर भगवान शिव उस शिवलिंग से प्रकट हो गए, और त्रिशूल लेकर यमराज पर झपटे। यमराज घबराकर हाथ जोड़े खड़े हो गए, और बोले, प्रभु यह आप क्या कर रहे हैं, मैं तो आप ही की आज्ञा का पालन कर रहा हूं। आप ही ने तो इस बालक की आयु 5 वर्ष निर्धारित की थी, और अब 5 वर्ष पूर्ण होने के बाद, मैं इसके प्राण लेने आया हूं। भगवान शिव बोले, इस बालक को 5 वर्ष की आयु आपने दी थी या मैंने। यमराज बोले, प्रभु, आप ने ही दी थी। भगवान शिव बोले, तो फिर इसकी उम्र पर आपका हिसाब चलेगा या हमारा। यमराज बोले, प्रभु, आयु आपने दी है तो हिसाब भी आप ही का चलेगा, लेकिन प्रभु, मैं आपका हिसाब सुनना चाहता हूं। भगवान शिव बोले, तो सुनिए यमराज। 

चार लाख बत्तीस हजार (4,32,000) वर्ष कलयुग की अवधि होती है, आठ लाख चौंसठ हजार (8,64,000) वर्ष द्वापर युग की अवधि होती है, बारह लाख छियानवें हजार (12,96,000) वर्ष त्रेता युग की अवधि होती है, सत्रह लाख अट्ठाइस हजार (17,28,000) वर्ष सतयुग की अवधि होती है, इन सभी चार युगों को जोड़कर एक चतुर्युग होता है। ऐसे  इकहत्तर (71) चतुर्युगों का एक मन्वंतर होता है, ऐसे चौदह 14 मन्वन्तरों का एक कल्प होता है। ब्रह्मा जी का एक दिन ऐसे 2 कल्पों के बराबर होता है। ब्रह्मा जी की आयु 100 वर्षों की होती है, और 10 ब्रह्मा की आयु के बराबर मेरा 1 दिन होता है। अब ऐसे दिनों वाले 12 महीनों का 1 वर्ष और ऐसे 5 वर्ष की आयु मैं इस बालक को प्रदान करता हूं। 
 
यमराज ने हाथ जोड़ लिए, और बोले, प्रभु, जब आपके एक दिन में दस ब्रह्माजी बदल जाते हैं, तो फिर मुझ जैसे यमराज की गिनती क्या है, यह बालक तो अमर हो गया, यह कहकर यमराज वहां से अंतर्ध्यान हो गए। वह बालक आगे चलकर मार्कण्डेय ऋषि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मार्कण्डेय ऋषि ऐसे ऋषि हैं, जिनका कल्पों के अंत में होने वाले प्रलय में नाश नहीं होता।

मार्कण्डेय ऋषि को यह अमृत्व का वरदान ऋषियों और संतो के आशीर्वाद के कारण ही प्राप्त हुआ था। उन्होंने अपने बालपन में एक वर्ष तक सभी संतों को शास्टांग प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लिया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें सप्तऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। सप्तऋषियों के आशीर्वाद के फलस्वरूप उन्हें ब्रह्माजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, ब्रह्माजी के आशीर्वाद के फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उन्हें अमृत्व का वरदान मिला। इसलिए शास्त्रों में संतों के आशीर्वाद की बहुत बड़ी महिमा बताई गयी है।
 
 

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