राजस्थान के लोकदेवता पाबूजी राठौड़ की कहानी Pabuji Rathore Story in Hindi - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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मंगलवार, 15 नवंबर 2022

राजस्थान के लोकदेवता पाबूजी राठौड़ की कहानी Pabuji Rathore Story in Hindi

पाबूजी राठौड़ की कहानी Pabuji Rathore Story in Hindi

 Pabuji Rathore Story in Hindi

पाबूजी का जन्म जोधपुर जिले के कोलूमंड नामक गांव में हुआ था। जोधपुर रियासत में एक राजा हुए, जिनका नाम राव धुहड़जी था। राव धुहड़जी के छोटे भाई का नाम धांदलजी था, पाबूजी इन्हीं धांदलजी के पुत्र थे। पाबूजी की माता का नाम कमलादे था, इनकी पत्नी का नाम फूलनदे था तथा इनके मित्र चांदा और डामा नाम के दो भील भाई थे। ऐसा कहा जाता है, कि पाबूजी को जन्म देने वाली माता एक अप्सरा थी, तथा बाद में उनकी परवरिश कमलादे ने की थी, इसलिए कमलादे को ही पाबूजी की माता के रूप में जाना जाता है। 


इस संदर्भ में एक कथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है। एक बार एक स्वर्ग की अप्सरा रात के समय मारवाड़ की धरती पर विचरण कर रही थी, वहीं पास में एक तालाब था। अप्सरा की तालाब में स्नान करने की इच्छा हुई, तो वह उसमें स्नान करने लगी। उसी समय धांदलजी अपने घोड़े पर सवार होकर उधर से जा रहे थे। उन्होंने उस अप्सरा को देख लिया और वह उसके पास चले गए। 


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Pabuji Rathore Story in Hindi

अप्सरा ने जब धांदल जी को देखा, तो वह उनसे बोली, मैं एक स्वर्ग लोक की अप्सरा हूं, हम धरती पर लोगों की नजरों से बचकर विचरण करते हैं। यदि हमें कोई देख लेता है, तो हमारी स्वर्ग लोक वापस जाने की शक्ति समाप्त हो जाती है, अब आपने मुझे देख लिया है, इसलिए मैं स्वर्ग लोक वापस नहीं जा सकती, अब मैं इस धरती पर कहां रहूंगी। 


धांदल जी बोले, आप मुझसे विवाह करके मेरे राजमहल में मेरे साथ रह सकती हैं। अप्सरा ने कहा, मैं आपसे विवाह करने के लिए तैयार हूं, लेकिन मेरी दो शर्ते होंगी। पहली शर्त यह की आपको मुझे मेरा महल अलग से बना कर देना होगा, मेरी दूसरी शर्त है, की मेरे उस महल में मेरी आज्ञा के बिना कोई भी प्रवेश नहीं करेगा, आप भी नहीं। धांदल जी ने अप्सरा की दोनों शर्तें मान ली, और इसके बाद उन दोनों का विवाह हो गया। कुछ समय बाद उनके एक पुत्र संतान उत्पन्न हुई, जिसका नाम पाबूजी रखा गया। 


पाबूजी का रूप बहुत ही सुंदर और तेजस्वी था, वे अपनी माता के साथ उस महल में ही रहा करते थे। उस महल में पाबूजी की माता की अनुमति के बिना कोई नहीं आता जाता था। पाबूजी के पिताजी धांदलजी भी जब उस महल में प्रवेश करते, तो पाबूजी की माता की अनुमति लेकर ही प्रवेश करते थे। एक दिन धांदल जी भूल वश बिना अनुमति के ही उस महल में प्रवेश कर गए। जब वह अंदर पहुंचे तो उन्होंने देखा, वहां पर एक शेरनी बैठी है, और पाबूजी को दूध पिला रही है। जैसे ही उस शेरनी ने धांदलजी को देखा, वह अप्सरा के रूप में बदल गई। 


धांदल जी ने अप्सरा से उस शेरनी का रहस्य पूछा। अप्सरा ने बताया मेरे पास रूप बदलने की  तथा और भी बहुत सी अलग-अलग शक्तियां है। जब मैं अकेली रहती हूं, तो अलग-अलग रूपों में रहती हूं, और अपने बालक के साथ खेलती हूं, और उसके साथ समय बिताती हूं। इसीलिए मैंने आपको कहा था, कि मेरी अनुमति के बिना इस महल में कोई प्रवेश नहीं करेगा। लेकिन आज आपने मेरी अनुमति के बिना महल में प्रवेश करके अपना वचन तोड़ा है, इसलिए अब मैं यहां आपके साथ नहीं रह सकती, मुझे जाना होगा। 


आज से इस बच्चे की देखभाल भी आपको ही करनी है। एक मां की दो इच्छा होती है, अपने बच्चे को दूध पिलाकर बड़ा करें, और उसे शादी में घोड़ी पर बैठा हुआ देखें। मैंने इस बच्चे को दूध पिला कर बड़ा तो कर दिया, परंतु इसे घोड़ी पर बैठा देखने की मेरी इच्छा अधूरी रह गई, क्योंकि आपने बीच में ही अपना वचन भंग कर दिया। इसलिए अब आप इस बच्चे को संभालिए, और मैं अपने लोक वापस जा रही हूं। यह कहकर वह अप्सरा वहां से अपने स्वर्ग लोक चली गई। 


इसके बाद धांदलजी की एक अन्य रानी कमलादे ने पाबूजी का बड़े स्नेह से पालन पोषण किया, इसीलिए कमलादे को पाबूजी की माता के रूप में जाना जाता है। धीरे-धीरे पाबूजी बड़े हो गए, और शादी के योग्य हो गए। पाबूजी की सगाई, आज के पाकिस्तान के सिंध प्रांत की एक रियासत अमरकोट के राजा, सूरजमल सोडा की सुपुत्री फूलनदे के साथ की गई थी। कुछ ही दिनों में उनकी शादी भी होने वाली थी, मारवाड़ में पाबूजी के विवाह की तैयारियां चल रही थी, और एक दिन शादी का शुभ दिन भी आ गया। 


पाबूजी ने विवाह के दिन बहुत अच्छी शेरवानी पहनी, तथा किलंगी और तुर्रा के साथ एक शानदार साफा बांधा।  पाबूजी दूल्हे की वेशभूषा में बहुत सुंदर लग रहे थे। पाबूजी के दोनों दोस्त चांदा और डामा पाबूजी के साथ थे। वे बोले पाबूजी आज तो आप बहुत सुंदर लग रहे हैं, आज तो आपको देखने के लिए अमरकोट के घरों के छज्जे टूट जाएंगे। बारात के लिए की गयी सारी तैयारीयां बहुत अच्छी है, लेकिन बस एक ही कमी है, कि हमारे पास एक अच्छी घोड़ी नहीं है। बिना अच्छी घोड़ी के दूल्हा अच्छा नहीं लग सकता। पाबूजी बोले, घोड़ी तो जो हमारे पास है, उसी से काम चलाना पड़ेगा, और अच्छी घोड़ी हम कहां से लेकर आए। 


पाबूजी के दोस्त बोले, हमारे गांव कोलूमंड मे चारण जाति की महिला है, जिसका नाम देवल है, उसके पास एक बहुत ही सुंदर घोड़ी है, जिसका नाम केसरकालमी है। उससे सुंदर घोड़ी पूरे मारवाड़ में किसी के पास नहीं है। अगर वह घोड़ी हमें मिल जाए, तो हमारा काम बन जाए, क्योंकि उससे सुन्दर घोड़ी कोई दूसरी है ही नहीं। पाबूजी बोले, तो ठीक है, आप दोनों जाओ और मां देवल से वह घोड़ी कुछ दिनों के लिए मांग कर ले आओ। 


दोनों भाई चांदा और डामा उस चारण जाति की महिला देवल के पास पहुंचे, और उनसे कहा, की पाबूजी की बारात जा रही है, और उनके पास अच्छी घोड़ी नहीं है। आपकी केसरकालमी जैसी घोड़ी पूरे मारवाड़ में किसी के पास नहीं है। यदि आप केसरकालमी कुछ दिनों के लिए हमें दे देंगे, तो पाबूजी उस पर बैठकर बारात लेकर जाएंगे तो कितने सुंदर लगेंगे। इसलिए आप हमें अपनी केसरकालमी घोड़ी दे दीजिए। 


देवल चारणी बोली, हमारे राजकुमार का विवाह है, इसकी मुझे बहुत खुशी है। और राजकुमार मेरी घोड़ी पर बैठकर बारात लेकर जाएंगे, तो मैं स्वयं को खुशनसीब समझूंगी। लेकिन मेरे पास बहुत सारी गायें हैं, और मेरा ग्वाला केसरकालमी पर बैठकर गाय चराने जाता है। आप दोनों तो जानते ही हैं, कि आजकल गायों की लूटपाट बहुत अधिक बढ़ गई है।  कल को भगवान ना करें, मेरी गायों की लूटपाट हो गई, तो वह ग्वाला तुरंत दौड़ कर सूचना तो दे सकता है, जिससे गांव वाले उन गायों की रक्षा कर सकते हैं। यदि केसरकालमी को आप ले जाएंगे, और पीछे से मेरी गायों की लूटपाट हो गई, तो फिर मैं अपनी गायों को कैसे बचाऊंगी। 


यह सुनकर दोनों भाई निराश होकर वापस लौट आए, और उन्होंने पाबूजी को बताया, कि देवल चारणी ने यह जवाब दिया है। उनकी बातें सुनकर पाबूजी स्वयं देवल के पास पहुंचे, और उनसे कहा की आप मुझे केसरकालमी दे दीजिए, मैं आपको आपकी गायों की रक्षा का वचन देता हूं। देवल चारणी बोली, पाबूजी, आप मेरी गायों की रक्षा कैसे कर पाएंगे। आप तो बारात लेकर जा रहे हैं, वहां जाकर आप शादी के समारोह में, और स्वागत सत्कार में खो जाएंगे, तो फिर आप मेरी गायों की रक्षा कैसे करेंगे। 


पाबूजी बोले, मैं आपको वचन देता हूं, मैं यहां से बारात लेकर जा रहा हूं, और यदि मुझे रास्ते में समाचार मिला, की आपकी गायों की लूट हो रही है, तो मैं आपकी गायों की रक्षा करने के लिए बीच रास्ते से वापस आ जाऊंगा। यदि मैं खाना खा रहा हूँगा, तो मैं खाना छोड़ कर वापस आ जाऊंगा। यदि मैं तोरण मार रहा हूंगा, तो मैं तोरण छोड़कर वापस आ जाऊंगा, और यदि मुझे बीच फेरों में पता चला, तो मैं फेरे छोड़कर आप की गायों की रक्षा करने आऊंगा। देवल बोली, पाबूजी, आप इतना कह रहे हैं, तो फिर आप घोड़ी ले जाइये। पाबूजी केसरकालमी को ले आते हैं। केसरकालमी वास्तव में एक बहुत ही सुंदर घोड़ी थी।


पाबूजी बारात लेकर अमरकोट पहुंचे, पाबूजी जैसा सजीला नौजवान जब केसरकालमी जैसी घोड़ी पर बैठा, तो अमरकोट के लोग देखते ही रह गए। पाबूजी के साथ-साथ लोग घोड़ी की भी बहुत तारीफ कर रहे थे। उस जमाने में जब बारात में घोड़ी आती थी, तो उस घोड़ी की अन्य घोड़ों के साथ दौड़ करवाई जाती थी। उस दिन जब केसरकालमी की अमरकोट के घोड़ों के साथ दौड़ करवाई गई, तो केसरकालमी ने वह दौड़ जीत ली। 


केसरकालमी इतनी दूर से चलकर आने के कारण थकी हुई थी, और अमरकोट के घोड़े वहां पर बिना थके खड़े थे, इसके बावजूद केसरकालमी ने वह दौड़ जीत ली थी। इस बात पर अमरकोट वालों को बहुत गुस्सा आया, की केसरकालमी ने हमारे घोड़ों को हरा दिया, इसलिए उन्होंने तोरण के समय पाबूजी को सबक सिखाने की सोची। 


तोरण के समय अमरकोट वालों ने तोरण बहुत ऊंचा बांध दिया था। उस जमाने में तोरण मारना शक्ति प्रदर्शन माना जाता था। पाबूजी जब तोरण मारने पहुंचे, उन्होंने देखा तोरण बहुत ऊंचा बांधा गया है, उन्होंने सोचा, यदि आज मैं इस तोरण को नहीं मार पाया, तो ससुराल में बहुत बेइज्जती हो जाएगी। पाबूजी ने केसरकालमी पर हाथ फेरा, और उससे कहा, केसर आज राठौड़ों की जाति को लज्जित मत होने देना, मारवाड़ के वंश को आज लज्जित मत होने देना। 


आज तू अपना जौहर दिखा, और इस तोरण को मारने में मेरी मदद कर। इसके बाद पाबूजी ने ढोल बजाने वाले से कहा, "ढोली रा छोरा, तू तो मदुरौ ढोल बजा, ढोल के धमाके माथे, महारी केसर घोड़ी नाच सी"। पाबूजी के कहने पर ढोली धमाकेदार ढोल बजाता है, जिसकी धुन पर केसर घोड़ी नाचती है, और नाचते-नाचते उछल कर अपने दोनों पैरों को अमरकोट के किले के कंगूरों पर टिका देती है, इसके बाद पाबूजी बड़े आराम से तोरण मारते हैं। 


वहां पर जितने भी लोग खड़े थे, सब के सब पाबूजी और केसर कालवी के इस करतब को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। सभी लोग बड़े खुश हुए, महिलाएं कहने लगी क्या सजीला नौजवान आया है, सुंदर घोड़ी पर बैठकर। इसके बाद पाबूजी की पत्नी फूलनदे की सहेलियों ने, जब उनको जाकर यह सब बातें बताई, कि तुम्हारे पति ने इस प्रकार बाहर तोरण मारा है, इतनी अच्छी घोड़ी पर बैठा हुआ है, और कितना सुंदर लग रहा है। यह बातें सुनकर फूलनदे मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई।  


इसके बाद पाबूजी किले के भीतर गए, कुछ ही देर में उनके फूलनदे के साथ फेरे होने लगे। पाबूजी ने अभी केवल तीन ही फेरे लिए थे, इतने में देवल चारणी खुद वहां पर पहुंची और उन्होंने रोते-रोते पाबूजी से कहा, मैंने आपको कहा था, मेरी घोड़ी मत लेकर जाइये, मेरी गायों की लूट हो जायेगी। उस दिन तो आप बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे, कि हम जहां कहीं भी होंगे, वहाँ से वापस आ जाएंगे और आपकी गायों की रक्षा करेंगे।


आज मेरी गाएं लूट ली गई, मेरा सर्वस्व नाश हो गया, और आप यहां पर बैठकर इन फेरों का आनंद ले रहे हैं, आपको शर्म आनी चाहिए। पाबूजी ने पूछा, मां देवल मुझे बताइए, आपकी गायें कौन ले गया। मैं आपको वचन देकर आया हूँ, और मैं अवश्य ही आपकी गायों की रक्षा करूंगा। देवल चारणी बोली, मेरी गायों को जींद राव खींची ले गया। 


जींद राव खींची जायल के राजा थे, वे रिश्ते में पाबूजी के बहनोई लगते थे, पाबूजी की सगी बहन की शादी जींद राव खींची के साथ की गई थी। लेकिन उस शादी के बाद से, जींद राव खींची और पाबूजी के परिवार में आपस में बनती नहीं थी। जींद राव खींची पाबूजी का विवाह रुकवाना चाहते थे। उन्हें जैसे ही मालूम चला की पाबूजी देवल चारणी को उनकी गायों की रक्षा का वचन देकर आए हैं, वे पाबूजी का विवाह रुकवाने के लिए देवल की गाएँ लूट कर ले गए। 


पाबूजी ने अभी केवल तीन ही फेरे लिए थे, लेकिन देवल चारणी की बात सुनकर उन्होंने उसी समय शादी का गठजोड़ा खोल दिया। यह देखकर अमरकोट के लोग हक्के-बक्के रह जाते हैं, और कहते हैं, पाबूजी आप विवाह को बिच में छोड़कर कैसे जा सकते हैं, कम से कम फेरे तो पूरे कीजिए। पाबूजी बोले, फेरों से पहले मेरा वचन जरूरी है, मैं माँ देवल को वचन देकर आया था, कि यदि फेरों के बीच में भी मुझे इनकी गायों की रक्षा के लिए जाना पड़ा, तो मैं अवश्य जाऊंगा। इसलिए मैं अपना वचन निभाने अवश्य जाऊंगा, नहीं तो आगे से कोई भी राठौड़ों के वचन पर विश्वास नहीं करेगा। 


यह कहकर पाबूजी उसी समय वहां से रवाना होते हैं, और जींद राव खींची का पीछा करते हैं। मार्ग में  देचू नाम का एक गांव पड़ता है, वहां पर पाबूजी और जींद राव खींची के बीच घमासान युद्ध हुआ। पाबूजी इस युद्ध में देवल चारणी की गायों को बचा लेते हैं, और उन्हें अपने कुछ सैनिकों के साथ वापस देवल के पास पहुंचा देते हैं। इस युद्ध में पाबूजी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं। 


एक ऐसा योद्धा जो अपने वचनों की रक्षा के लिए, अपनी शादी के फेरों के बीच में से उठ कर आ गया था, और गायों की रक्षा करते हुए जिसने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था, ऐसे वीर योद्धा को राजस्थान में लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। पाबूजी ने अपने विवाह में केवल तीन ही फेरे लिए थे, इसीलिए उस दिन के बाद से आज भी, राजस्थान की शादियों में सात की जगह केवल चार फेरे ही लिए जाते हैं। क्योंकि राजस्थान के लोगों की मान्यता है, कि ब्याह में तीन फेरे तो पाबूजी ने ले लिए थे, इसलिए जो बचे हुए चार फेरे हैं वही विवाह में लिए जाते हैं।


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