विजयनगर का चोर: मंत्री की सूझबूझ ने खोली पोल - Hindi Story in Hindi - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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शनिवार, 29 जून 2024

विजयनगर का चोर: मंत्री की सूझबूझ ने खोली पोल - Hindi Story in Hindi

विजयनगर का चोर: मंत्री की सूझबूझ ने खोली पोल हिंदी कहानी 

Hindi Story in Hindi

प्राचीन समय में भारत के विजयनगर राज्य में महाराजा कृष्णदेव राय का शासन था। उनके मंत्री, तेनालीराम, बहुत चतुर और बुद्धिमान व्यक्ति थे। तेनालीराम कठिन से कठिन समस्याओं को अपनी बुद्धि से कुछ ही क्षणों में सुलझा लेते थे। महाराजा कृष्णदेव राय एक कीमती रत्नजड़ित अंगूठी पहनते थे, जो उन्हें बहुत प्रिय थी। जब भी वे दरबार में उपस्थित होते, तो अक्सर वही अंगूठी पहनकर जाया करते थे। राजमहल में आने वाले मेहमान और मंत्रीगण भी उस अंगूठी की बहुत प्रशंसा किया करते थे।


एक दिन महाराज अपने सिंहासन पर उदास बैठे थे। तभी तेनालीराम वहाँ आए और महाराज की उदासी का कारण पूछा। महाराज ने बताया कि उनकी पसंदीदा अंगूठी खो गई है। महाराज की सुरक्षा का घेरा इतना सख्त था कि कोई चोर या सामान्य व्यक्ति उनके नजदीक नहीं जा सकता था। इसके बावजूद उनकी अंगूठी चुरा ली गयी, इसलिए महाराज को यह पक्का शक था, कि उनकी अंगूठी उनके बारह अंगरक्षकों में से ही किसी एक ने चुराई है।

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तेनालीराम ने तुरंत महाराज से कहा कि महाराज आप चिंता न करें, मैं चोर को जल्द ही पकड़ लूंगा। यह सुनकर महाराज कृष्णदेव राय बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने तुरंत अपने सभी अंगरक्षकों को दरबार में बुलवा लिया।


तेनालीराम बोले, "महाराज की पसंदीदा अंगूठी खो गयी है, और हमें यह शक है, की वह अंगूठी आप बारह अंगरक्षकों में से ही किसी एक ने चुराई है। मैं अवश्य ही आप लोगों में छिपे उस चोर का पता लगा लूंगा। जो भी निर्दोष है उसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं, लेकिन जो चोर है, वह सख्त से सख्त सजा के लिए तैयार हो जाए।"

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तेनालीराम ने आगे कहा, "अब आप सभी मेरे साथ चलिए, हमें देवी माता के मंदिर जाना है।"


महाराज बोले, "ये क्या कर रहे हो तेनालीराम, हमें चोर को पकड़ना है, देवी माता के दर्शन नहीं करने हैं!"


तेनालीराम बोले, "महाराज, आप धैर्य रखें, कुछ ही देर में उस चोर का पता लग जाएगा।"


मंदिर पहुंचकर तेनालीराम पुजारी के पास गए और उन्हें एकांत में कुछ निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने अंगरक्षकों से कहा, "आप सभी को बारी-बारी से मंदिर में जाकर देवी माता की मूर्ति के चरण छूने हैं और तुरंत उसी समय बाहर आ जाना है। ऐसा करने से देवी माता आज रात ही मुझे स्वप्न में उस अंगूठी चोर का नाम बता देंगी।"

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अब सारे अंगरक्षक एक-एक करके मंदिर में जाकर देवी की मूर्ति के चरण छूने लगे। जैसे ही कोई अंगरक्षक देवी की मूर्ति के चरण छूकर बाहर निकलता, तेनालीराम उसके दोनों हाथ सूंघकर उसे एक कतार में खड़ा कर देते। कुछ ही देर में सभी अंगरक्षक मंदिर के बाहर एक कतार में खड़े हो गए।


महाराज बोले, "चोर का पता कल सुबह तक ही लगेगा, तब तक इन सभी के साथ क्या किया जाए?"


तेनालीराम बोले, "नहीं महाराज, चोर का पता तो लगाया जा चुका है। बाएं से सातवें स्थान पर खड़ा अंगरक्षक ही चोर है।"


यह सुनते ही वह अंगरक्षक भागने लगा, लेकिन वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे तुरंत पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया।


महाराज और बाकी सभी लोग आश्चर्य कर रहे थे, कि तेनालीराम ने स्वप्न देखे बिना कैसे पता लगाया कि वही अंगरक्षक चोर है।

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तब तेनालीराम ने सभी के कौतुहल को शांत करते हुए बताया, "मैंने मंदिर के पुजारी से कहा, की देवी की मूर्ति के चरणों पर तेज सुगंधित इत्र का छिड़काव कर दें। जिससे जो भी उनके चरणों का स्पर्श करे, उसके हाथो में इत्र की सुगंध आ जाये। जिस भी अंगरक्षक ने देवी के चरण छुए, उसके हाथ में वही सुगंध आ गई। लेकिन जब मैंने सातवें अंगरक्षक के हाथ सूंघे तो उनमें कोई सुगंध नहीं थी, क्योंकि वही चोर था और उसने पकड़े जाने के डर से देवी की मूर्ति के चरण छुए ही नहीं। इससे साबित हो गया कि वही अंगरक्षक चोर है।"


यह सुनकर महाराज कृष्णदेव राय ने एक बार फिर मंत्री तेनालीराम की बुद्धिमत्ता का लोहा माना और उन्हें हजार स्वर्ण मुद्राएं देकर सम्मानित किया।


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