श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कहानी
Hindi Story in Hindi
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार प्राचीन समय में दक्षिण भारत में सुधर्मा नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। वह भगवान शिव का परम भक्त था और उसकी पत्नी भी एक पतिव्रता स्त्री थी। उन्हें किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं था, परन्तु उनके कोई संतान नहीं थी जिसके कारण सुदेहा हमेशा दुखी रहा करती थी।
एक दिन ज्योतिषगणना के आधार सुदेहा को मालूम पड़ा की उसके गर्भ से संतानोत्पत्ति नहीं हो सकती। तब सुदेहा अपनी छोटी बहन घुष्मा को अपने घर लेकर आयी और अपने पति से प्रार्थना करने लगी की मुझे तो संतान की प्राप्ति नहीं हो सकती, इसलिए आप मेरी छोटी बहन घुष्मा से विवाह कर लें। सुधर्मा दूसरा विवाह नहीं करना चाहता था, परन्तु अपनी पत्नी की जिद के आगे झुककर उसे घुष्मा से विवाह करना पड़ा।
घुष्मा एक सदाचारिणी स्त्री थी, और वह भगवान शिव की परम भक्त भी थी। वह प्रतिदिन मिटटी से 100 शिवलिंग बनती और विधिविधान से उनका पूजन करके, उन्हें पास के ही तालाब में विसर्जित कर देती, यह उसका नित्य का नियम था। जब घुष्मा ने एक लाख शिवलिंगों का पूजन पूर्ण कर लिया, तब भगवान शिव की कृपा से उसे एक सुन्दर और गुणवान पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र प्राप्ति पर घुष्मा और सुधर्मा को अत्यंत खुशी हुई, परन्तु इससे सुदेहा को अपनी छोटी बहन घुष्मा से ईर्ष्या होने लगी, घुष्मा के पुत्र के प्रति उसका व्यवहार भी बहुत बुरा था।
समय बितने पर घुष्मा का पुत्र बड़ा हो गया, उसे विवाह योग्य जानकर सुधर्मा ने उसका विवाह एक योग्य कन्या से कर दिया, इससे सुदेहा की ईर्ष्या और अधिक बढ़ गयी और उसने निश्चय किया की जब तक घुष्मा के पुत्र की मृत्यु नहीं होगी तब तक उसे शांति नहीं मिलेगी। इसलिए एक दिन सुदेहा ने रात को सोते समय घुष्मा के पुत्र की हत्या कर दी और उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके उसी तालाब में बहा दिए जिसमे घुष्मा शिवलिंगों का विसर्जन करती थी। इसके बाद सुदेहा आराम से घर आकर सो गयी। सुबह होने पर जब सबको इस बात का पता चला तो घुष्मा और उसकी पुत्रवधु जोर-जोर से रोने लगे। सुदेहा भी उनके साथ आंसू बहाने लगी, परन्तु वह मन ही मन बहुत प्रसन्न थी। कुछ देर बाद सुधर्मा भगवान शिव का पूजन करके लौटे तब उन्हें इस बात का पता चला।
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सुधर्मा अपनी पत्नी घुष्मा से बोले देवी इस तरह रोना छोड़ दो, भगवान शिव ने हमें पुत्र प्रदान किया था, अब वे ही उसकी रक्षा करेंगें, इसलिए रोना छोड़ो और अपना नित्य कर्म करो। पति की आज्ञा मानकर घुष्मा ने हमेशा की भाँती 100 शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया और उन्हें विसर्जित करने के लिए तालाब पर गयी। शिवलिंग विसर्जित करने के बाद जब वह मुड़ी तो उसे अपना पुत्र तालाब के किनारे खड़ा मिला।
अपने पुत्र को जीवित पाकर वह बहुत प्रसन्न हुई और बार बार भगवान शिव का धन्यवाद करने लगी। उसी समय भगवान शिव प्रकट हो गए और बोले देवी घुष्मा मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम्हारी बहन सुदेहा ने तुम्हारे पुत्र की हत्या की थी, परन्तु मैंने इसे पुनर्जीवित कर दिया है। इस अपराध के लिए मैं तुम्हारी बहन को अवश्य दंड दूंगा।
इस पर घुष्मा ने भगवान शिव से कहा की प्रभु आप मेरी बहन को क्षमा कर दें, निश्चित ही उसने जघन्य अपराध किया है, परन्तु आपकी कृपा से मुझे मेरा पुत्र वापस मिल गया है, और मै अपनी बहन के लिए बुरा नहीं चाहती इसलिए आप उसे क्षमा कर दें। घुस्मा की बात सुनकर भगवान शिव बोले ठीक है, जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, मांगो क्या वरदान माँगना चाहती हो।
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यह सुनकर घुष्मा बोली हे प्रभु आप इस जगत और लोगों के कल्याण इसी स्थान पर निवास करने की कृपा करें। तब भगवान शिव बोले, हे देवी तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए मैं तुम्हारे नाम से घुश्मेश्वर कहलाकर यहीं निवास करूँगा। यह कहकर भगवान शिव उसी समय ज्योतिर्लिंग के रूप में उस स्थान पर स्थापित हो गए।
यह ज्योतिर्लिंग श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ, इस ज्योतिर्लिंग को श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। वह तालाब जिसमे घुष्मा शिवलिंगो का विसर्जन करती थी, वह शिवालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस सरोवर का दर्शन करने बाद श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में निःसंतान दम्पतियों की संतान प्राप्ति इच्छा शीघ्र पूरी होती है। यहां सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति समस्त भौतिक सुखों को प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करता है।
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