भक्त त्रिलोचन जी की कथा, जिनके घर भगवान सेवक बनकर आये

भक्त त्रिलोचन जी की कथा, जिनके घर भगवान सेवक बनकर आये Krishna Story in Hindi


महाराष्ट्र के पंढरपुर में भक्त त्रिलोचन जी और उनकी पत्नी निवास करते थे। वे भगवान पंढरीनाथ (श्री कृष्ण) के बहुत बड़े भक्त थे। भक्त त्रिलोचन जी वर्ण से वैश्य थे, उनका महाजनी का काम था। भगवान की कृपा से उनके पास धन की कोई कमी नहीं थी। उनके कोई संतान नहीं थी, लेकिन उन्हें संतान न होने का दुख भी नहीं था, वे सदा भगवान की भक्ति में ही मन लगाए रहते थे, इसलिए उन्होंने संतान की आशा कभी नहीं की। krishna story in Hindi.

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Krishna Story in Hindi

भक्त त्रिलोचन जी की संत सेवा में भी बहुत निष्ठा थी, वह भगवान पंढरीनाथ के मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को बड़े प्रेम से अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाते थे।  दोनों पति-पत्नी सारा दिन अपने हाथों से भोजन बनाते और साधु-संतों और श्रद्धालुओं को खिलाते, इसलिए उनके घर पर सदा ही लोगों की भीड़ लगी रहती थी। जितने लोग भगवान पंढरीनाथ के मंदिर में दर्शन के लिए आते, उतने ही लोग त्रिलोचन जी के घर प्रसाद पाने आते, दोनों पति-पत्नी बड़े भाव से सभी आगंतुकों की सेवा करते थे। 


समय के साथ दोनों पति-पत्नी वृद्ध हो गए, वृद्धावस्था के कारण अब उनसे पहले जितना काम नहीं होता था, इसलिए कई बार संतो को प्रसाद के लिए इंतजार करना पड़ता था, कई बार संत भी उनके काम में हाथ बटाते थे, जिसके कारण उन्हें बहुत दुख होता था। धीरे-धीरे उनके घर आगंतुकों का आना भी कम हो गया, इस कारण त्रिलोचन जी बहुत दुखी रहने लगे। 


एक दिन त्रिलोचन जी ने अपनी पत्नी से कहा - हम दोनों अब वृद्ध हो चुके हैं, अब हमसे उतना काम नहीं होता।  इसलिए क्यों ना हम संतों की सेवा के लिए एक सेवक रख लें, जो संतों की सेवा के काम में हमारी मदद करे।  त्रिलोचन जी की पत्नी बोली - यह तो बहुत अच्छा विचार है, अगर सेवक आ जाएगा तो हम पहले की ही तरह संत  सेवा कर पाएंगे, लेकिन सेवक ऐसा होना चाहिए, जो मन लगाकर साधुओं की सेवा करें। 


त्रिलोचन जीने कहा ठीक है. त्रिलोचन जी ने अपने घर के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख दिया - यहां संत सेवा के लिए एक सेवक की आवश्यकता है, कोई सेवाभावी व्यक्ति भीतर आकर संपर्क करें। भगवान पंढरीनाथ (श्री कृष्ण) से त्रिलोचन जी का यह कष्ट देखा नहीं गया, अगले दिन स्वयं भगवान पंढरीनाथ एक किशोर बालक का रूप बनाकर उनके घर आ गए। krishna story in Hindi.


उस समय त्रिलोचन जी भगवान के ध्यान में बैठे थे, किशोर बालक त्रिलोचन जी को प्रणाम करके बोला - साहब जी आपको सेवक की आवश्यकता है, मैं आपके यहां सेवक बनकर काम करने के लिए तैयार हूं। त्रिलोचन जी और उनकी पत्नी ने देखा एक बड़ा ही सुंदर 15 - 16 वर्ष की आयु का एक किशोर बालक उनके सामने खड़ा था, उसने टूटी हुई चप्पल और फटे पुराने वस्त्र पहने थे। 


त्रिलोचन जी ने पूछा - बेटा तुम्हारा नाम क्या है, और तुम्हारे घर में कौन कौन है। 


बालक ने बताया - मेरा नाम अंतर्यामी है, और मैं अकेला ही हूँ, मेरा कोई नहीं। यह सुनकर त्रिलोचन जी और उनकी पत्नी को उस बालक पर बहुत दया आई। 


त्रिलोचन जी ने उससे पूछा - बेटा तुम क्या काम करना जानते हो, वह बालक बोला - साहब जी मैं घर के सभी काम कर लेता हूं। krishna story in Hindi.


त्रिलोचन जी बोले - हमारे घर में प्रतिदिन सैकड़ो लोगों का भोजन बनता है, क्या तुम रोज इतने लोगों का भोजन बना सकते हो। 


वह बालक बोला साहब आप बिलकुल निश्चिंत रहिये, भोजन बनाने में तो मुझे विशेष दक्षता प्राप्त है, सैकड़ो लोगों का भोजन बनाना तो मेरे बाएं हाथ का काम है, मैं तो भोजन बनाने के साथ-साथ आपके घर झाड़ू-बर्तन और साफ सफाई भी कर दिया करूंगा। 


यह सुनकर त्रिलोचन जी बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने सोचा यह तो हमें बहुत अच्छा सेवक मिला है। त्रिलोचन जी बोले - ठीक है तुम यहां पर सेवा कर लेना, लेकिन यह तो बताओ तुम यहां पर सेवा करने का क्या लोगे।

 

बालक बोला - बाबूजी मुझे बस भरपेट भोजन दे दो और रात को सोने के लिए जगह दे दो मुझे बस इतना ही चाहिए। 

त्रिलोचन जी बोले - हमारे घर में भोजन की कोई कमी नहीं, तुम्हारी जितनी इच्छा हो तुम उतना भोजन करना, और हमारा घर भी बहुत बड़ा है, हम तुम्हें एक कमरा दे देंगें तुम वहाँ आराम से रहना। 


वह बालक बोला - मैं आपके घर के सभी कार्य करूँगा, लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं। krishna story in Hindi.


त्रिलोचन जी बोले - बताओ तुम्हारी क्या शर्ते हैं। 


बालक बोला - मैं सभी के लिए भोजन बनाऊंगा, लेकिन मेरे लिए आपको भोजन बनाना होगा। क्योंकि मैं अपने हाथों से बना भोजन ग्रहण नहीं करता।

 

त्रिलोचन जी की पत्नी ने सोचा यह छोटा सा बालक है, दो चार रोटी में तृप्त हो जायेगा। वह बोली - ठीक है मैं तुम्हारे लिए भोजन बना दूंगी। 


वह बालक बोला - मेरी दूसरी शर्त है - मैं कितना भी भोजन करूँ मुझे कभी यह मत कहना की तुम इतना क्यों खाते हो। 


त्रिलोचन जी बोले - तुम भरपेट चार पांच रोटी खा लेना हम तुम्हें कभी नहीं टोकेंगें। 


बालक बोला - चार पांच रोटी से मेरा कुछ नहीं होता, मैं दिनभर में एक समय ही भोजन करता हूँ, लेकिन एक बार में चार से पांच किलो रोटियां खाता हूँ। 


त्रिलोचन जी बोले - तुम जितना चाहे भोजन करना, लेकिन संतों की सेवा में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। 


बालक बोला मेरी तीसरी और आखरी शर्त यह है -  आप किसी अन्य व्यक्ति से भी मेरी चुगली नहीं करेंगें की मैं इतना अधिक भोजन करता हूँ। जिस दिन आपने मुझसे या किसी अन्य व्यक्ति से मेरे भोजन के बारे में कहा, मैं उसी दिन आपका घर छोड़कर चला जाऊंगा। 


त्रिलोचन जी और उनकी पत्नी ने बालक अंतर्यामी की सभी शर्ते मान ली। 


अगले दिन से अंतर्यामी के रूप में आये भगवान ने त्रिलोचन जी के घर काम करना शुरू कर दिया। अगले दिन त्रिलोचन जी सुबह सोकर उठे तो उन्होंने देखा की रसोई घर में अलग-अलग चूल्हों पर अलग-अलग व्यंजन तैयार हो रहे हैं, अंतर्यामी भाग-भाग कर 15 तरह के व्यंजन बना रहा है।  जब तक त्रिलोचन जी और उनकी पत्नी स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत हुए, तब तक अंतर्यामी ने सैंकड़ो लोगों का भोजन तैयार भी कर दिया। 


अब सुबह-सुबह श्रद्धालु आने लगे, अंतर्यामी ने सभी को बड़े प्रेम से भोजन परोसा। त्रिलोचन जी अंतर्यामी की इस कार्य में मदद करना चाहते थे, लेकिन अंतर्यामी ने उन्हें कोई काम नहीं करने दिया, सारा कार्य स्वयं ही किया।


अंतर्यामी का बनाया भोजन इतना शुद्ध और स्वादिष्ठ था, की सभी ने उस भोजन की बहुत प्रसंशा की। भोजन करने वालोँ पेट तो भर जाता, लेकिन भोजन करने की इच्छा ख़त्म नहीं होती। सभी संतों ने त्रिलोचन जी से भोजन की बहुत प्रसंशा की - संत बोले त्रिलोचन जी आपके यहाँ हमने बहुत बार भोजन किया, लेकिन ऐसा स्वादिष्ठ भोजन हमने कभी नहीं खाया, आपके सेवक अंतर्यामी ने तो कमाल ही कर दिया। 


त्रिलोचन जी और उनकी पत्नी बहुत खुश थे, वे दोनों बैठे-बैठे देख रहे थे की उनका सेवक कैसे सभी काम बड़ी दक्षता से कर रहा है, सैंकड़ों लोगों को भोजन परोस रहा है, उनके बर्तन साफ़ कर रहा है, संतों के चरण दबा रहा है उनकी सेवा कर रहा है।  अंतर्यामी ने दिनभर आने वाले सैंकड़ों लोगो को बड़े प्रेम से भोजन कराया और बड़े प्रेम से सबकी सेवा की। शाम के समय सभी काम निपटाकर अंतर्यामी ने त्रिलोचन जी की पत्नी से कहा - मैया अब मुझे भी भोजन खिला दो, मुझे बहुत भूख लग रही है।  krishna story in Hindi.


त्रिलोचन जी की पत्नी अंतर्यामी के काम से बहुत प्रसन्न थी वह बोली - हाँ बेटा तू बैठ जा, मैं अभी तेरे लिए भोजन बनाती हूँ। 


त्रिलोचन जी की पत्नी ने सोचा छोटा सा बालक कितना भोजन करेगा, अगर थोड़ा अधिक भी खायेगा तो पांच लोग जितना खाते हैं, उतना भोजन बना लेती हूँ।  उन्होंने पांच लोग भरपेट भोजन कर सकें उतना भोजन बना कर अंतर्यामी को भोजन करने के लिए बैठाया। स्वयं भगवान जो अंतर्यामी के रूप में आये थे, उन्होंने कुछ ही देर में सारा भोजन खा लिया और बोलै - मैया मुझे और भोजन चाहिए। त्रिलोचन जी की पत्नी आश्चर्यचकित रह गयी, इतने छोटे से बालक ने पांच लोगों के बराबर भोजन खा लिया और अभी भी इसकी भूख शांत नहीं हुई। 


अंतर्यामी के लिए पांच और लोगों का भोजन बनाया गया, लेकिन उससे भी उसकी भूख शांत नहीं हुई। इस प्रकार अंतर्यामी के लिए बार बार भोजन बनाया गया और अंततः 50 लोगों के बराबर भोजन करके अंतर्यामी की भूख शांत हुई। इस तरह इतना सारा भोजन बनाते-बनाते त्रिलोचन जी की पत्नी परेशान हो गयी।

 

अब यह उनका नित्य का नियम हो गया, अंतर्यामी भगवान दिन भर सारे काम करते, संतों को प्रेम से भोजन कराते, उनकी सेवा करते और शाम को त्रिलोचन जी की पत्नी के हाथों से बना भोजन ग्रहण करते। 


अब तो त्रिलोचन जी के घर आने वाले संतो और श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ने लगी, अंतर्यामी इतना स्वादिष्ठ भोजन बनाता था, जिसकी सभी प्रसंशा करते थे। त्रिलोचन जी के घर के भोजन की चर्चा दूर दूर तक होने लगी, जिससे और अधिक संत और श्रद्धालु आने लगे, सभी संत प्रसन्न होकर त्रिलोचन जी को आशीर्वाद देकर जाते थे। krishna story in Hindi.


अब त्रिलोचन जी को कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता था, उनके पास कोई काम ना होने के कारण उनके पास समय भी बहुत था। इसलिए वे अपना सारा दिन भगवान के भजन गाने में बिताने लगे। त्रिलोचन जी के घर में दिन भर भगवान के भजन गाए जाने लगे, और सत्संग होने लगा, जिससे उनके घर और अधिक संत आने लगे। त्रिलोचन जी के घर प्रतिदिन उत्सव जैसा माहौल रहने लगा,  सब जगह त्रिलोचन जी की जय-जयकार हो गयी। 


इसी प्रकार 13 महीनों का समय बीत गया, एक दिन त्रिलोचन जी की पत्नी पड़ोस में गयी। महिलाओ की आपस में बातचीत होने लगी। एक महिला ने त्रिलोचन जी की पत्नी से कहा - जब से अंतर्यामी आया है, आपके घर में तो बड़ी खुशहाली आ गयी है, और त्रिलोचन जी की तो रंगत ही बदल गयी है उनके चेहरे पर बड़ा तेज आ गया है, उनकी सेहत भी पहले से बहुत अच्छी हो गयी है। लेकिन आप तो पहले भी दुबली थी और अब भी दुबली हो, आपकी सेहत में कोई सुधार क्यों नहीं आया। 


त्रिलोचन जी की पत्नी बोली - मेरा दुःख कोई नहीं जानता। अंतर्यामी सबकी सेवा करता है, लेकिन अंतर्यामी की सेवा मुझे करनी पड़ती है।

 

महिला ने पूछा- क्या सेवा करनी पड़ती है।

 

त्रिलोचन जी की पत्नी बोली - अंतर्यामी सबको भोजन बनाकर खिलाता है, लेकिन अपने हाथ से बना भोजन नहीं खाता, उसके लिए मुझे भोजन बनाना पड़ता है। 


महिला बोली  - अरे वह तो सोलह सत्रह वर्ष का बालक है, कितना भोजन खाता होगा। 


त्रिलोचन जी की पत्नी बोली - अरी बहन तुम नहीं जानती, वह दिनभर में एक ही बार भोजन करता है, लेकिन जब भोजन करने बैठता है तो लगातार तीन से चार घंटे तक भोजन करता रहता है, पचास लोगों के बराबर अकेला भोजन करता है, इतना खाता है की मैं तो बना-बना कर थक जाती हूँ। 


त्रिलोचन जी की पत्नी के ऐसा कहते ही अंतर्यामी के रूप में आये हुए भगवान अंतर्ध्यान हो गए। जब वह अपने घर पहुंची तो उन्हें अंतर्यामी कहीं दिखाई नहीं दिया, सब जगह अंतर्यामी की खोज की गयी परन्तु वह कहीं नहीं मिला। अंतर्यामी के चले जाने पर त्रिलोचन जी और उनकी पत्नी बहुत दुखी हुए, दोनों पति-पत्नी अंतर्यामी की याद में रोने लगे। krishna story in Hindi.


दोनों पति-पत्नी भगवान पंढरीनाथ के मंदिर पहुंचे,  दोनों ने भगवान से विनती की, हे प्रभु, आपने हमें संतान नहीं दी उसका हमें कोई दुःख नहीं।लेकिन एक सेवक हमारे जीवन में आया था, उसके आने से हमारे घर में संतो की सेवा होने लगी, भजन-कीर्तन होने लगा, वह सेवक पुत्र के समान ही हमारी सेवा किया करता था। कृपा करके उस सेवक को हमारे घर वापस भेज दें, ऐसा कहकर दोनों पति-पत्नी आँखों से आंसू बहाने लगे।

 

तभी उन दोनों को अंतर्यामी की आवाज सुनाई दी, साहब जी मैं यहाँ हूँ। दोनों ने आँखे खोली तो उन्होंने पाया, यह आवाज भगवान पंढरीनाथ की मूर्ति से आ रही थी। भगवान पंढरीनाथ बोले - आप दोनों ने जीवन भर साधु-संतो और मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा की है, इसलिए आप पर प्रसन्न होकर मैं स्वयं अंतर्यामी का रूप लेकर इस कार्य में आपकी सहायता करने आया था, यदि आप चाहेंगें तो मैं फिर से आपकी सहायता करने आ जाऊंगा।

 

इतना सुनकर त्रिलोचन जी और अधिक विलाप करने लगे, वे बोले - हे प्रभु, हम जैसे तुच्छ प्राणियों के घर आप नौकर बनकर आये, आपने हमारी सेवा की, हमारे लिए भोजन पकाया, हमारे बर्तन धोये। हे प्रभु हम आपको पहचान नहीं पाये, आपसे सेवा करवाकर हमसे बहुत बड़ा पाप हो गया। 


भगवान बोले आप से कोई पाप नहीं हुआ, हम स्वयं आपकी भक्ति से प्रसन्न होकर आपकी सहायता करने आये थे। अब आप दोनों शोक रहित होकर अपने घर जाइये, शीघ्र ही आप दोनों मुक्त होकर हमारे परम धाम में हमारा सानिध्य प्राप्त करेंगें। 


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